शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
(2018) 5 SCC 311
उच्चतम न्यायालय
SLP (Crl.) 2302/2017
न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल और न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन के समक्ष
निर्णय दिनांक: 3 अप्रैल 2018
मामले की प्रासंगिकता: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र की आवश्यकता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 79A)
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 54A, 164)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 62, 65A, 65B)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- अपराध के एक दृश्य की वीडियोग्राफी का उपयोग माननीय न्यायालय के समक्ष विचार का विषय है। इसे पहले की सुनवाईओं में हुई कार्यवाही को नोट करने के बाद निर्धारित किया जाना था।
- यह देखा गया कि इस तरह की वीडियोग्राफी जांच प्रक्रिया में मदद करेगी। ऑडियो और वीडियो टेप टेक्नोलॉजी को एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में जोर दिया गया जिसके माध्यम से प्रत्यक्ष जानकारी एकत्र की जा सकती है और यह महत्वपूर्ण सबूत की भूमिका निभा सकता है।
- यह भी बताया गया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 54A और 164 के प्रावधान क्रमशः पहचान प्रक्रिया और संस्वीकृित कथन (confessional statement) की वीडियोग्राफी के लिए दिशा प्रदान करते हैं। अन्य उपायों को अपनाने के लिए सुझाव दिए गए थे ताकि मरते हुए व्यक्ति के बयान और पोस्टमार्टम को भी वीडियो में रिकॉर्ड किया जा सके।
- पिछली एक सुनवाई में यह देखा गया था कि इस तरह के सबूत को हमेशा सावधानी से संभालना चाहिए और प्रत्येक मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अदालत द्वारा प्रामाणिकता के बारे में अपनाए गए सुरक्षा उपायों के अधीन, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार्य मानना चाहिए।
- नई तकनीकों और उपकरणों में छेड़छाड़ की आशंका होती है और इसलिए कोई भी विस्तृत नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता है जिसके द्वारा साक्ष्य की स्वीकार्यता पर निर्णय लिया जाये। इसकी प्रामाणिकता और सटीकता के प्रमाण का मानक अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों की तुलना में अधिक कठोर होना चाहिए।
- इसलिए, मुख्य मुद्दा इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के संबंध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B(4) की व्याख्या थी।
न्यायपीठ की राय
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की ग्राह्यता के विषय पर कानूनी स्थिति, विशेष रूप से उस पक्ष द्वारा जिसके पास वह उपकरण नहीं है जिससे दस्तावेज़ प्रस्तुत किया गया है, यह है कि ऐसे पक्ष को धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
- जहाँ न्याय का हित उचित हो, वहां प्रमाण पत्र की प्रक्रियात्मक होने की आवश्यकता में न्यायालय द्वारा छूट दी जा सकती है ।
अन्तिम निर्णय
- विशेषज्ञों की समिति द्वारा तैयार की गई केंद्र संचालित कार्य योजना और उल्लिखित समय-सीमा को मंजूरी दी गई।
- गृह मंत्रालय द्वारा एक केंद्रीय निरीक्षण निकाय (सीओबी) का गठन किया जाएगा जो जांच में वीडियोग्राफी के उपयोग की आगे की योजना और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होगी । इसके साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करेगी कि चरणबद्ध तरीके से वीडियोग्राफी का उपयोग एक वास्तविकता बन जाए। इसे कम से कम कुछ स्थानों पर व्यवहार्यता और प्राथमिकता के अनुसार लागू किया जाना चाहिए।
- कानून और व्यवस्था राज्य का विषय होने के बावजूद परियोजना के लिए वित्त पोषण केंद्र द्वारा शुरू किया जा सकता है।
- मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए सभी पुलिस थानों और जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। सीओबी स्वतंत्र समिति (सीसीटीवी फुटेज का अध्ययन करने के लिए) के निर्माण के संबंध में निर्देश जारी करेगी और 3 महीने के भीतर ऐसे निर्देशों के अनुपालन के बारे में जानकारी संकलित करेगी और अदालत को रिपोर्ट पेश करेगी। निर्देशों का अनुपालन केंद्र सरकार में गृह मंत्रालय के सचिव के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों के गृह सचिवों द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा।
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