महाराष्ट्र राज्य बनाम रमेश विश्वनाथ दरंडले और अन्य
महाराष्ट्र राज्य बनाम रमेश विश्वनाथ दरंडले और अन्य
बॉम्बे उच्च न्यायालय
आपराधिक अपील 949/2018
न्यायाधीश बी.पी. धर्माधिकारी और न्यायाधीश संदीप के. शिंदे के समक्ष
निर्णय दिनांक: 02 दिसंबर 2019
मामले की प्रासंगिकता: CDRs और धारा 65B के तहत प्रमाणपत्र की स्वीकार्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(1)(t))
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 3, 8, 27, 65A, 65B, 106)
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 302,120B)
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 194, 313, 366)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- संदीप थंवर, राहुल कंडारे और सचिन घारू (तीनों मृतक पीड़ित) अहमदनगर जिले के त्रिमूर्ति प्रतिष्ठान कॉलेज में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करते थे।
- सचिन, जो अनुसूचित जाति के थे, उन्हें पांचवें आरोपी की बेटी सीमा दरंदले से प्यार हो गया, जो मराठा जाति (उच्च वर्ग) की हैं।
- पांचवें आरोपी की बेटी त्रिमूर्ति कॉलेज से बी.एड कर रही थी।
- जब परिवार के सदस्यों को सीमा के सचिन के साथ कथित प्रेम संबंधों का पता चला, तो आरोपी नंबर 1 से आरोपी नंबर 7 ने सचिन को मारने का षड्यंत्र रचा।
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अभियोजन पक्ष का कहना है कि 1 जनवरी 2013 को आरोपी ने सेप्टिक टैंक की मरम्मत और सफाई के बहाने मृतक पीड़ितों को आरोपी नंबर 5 के फॉर्म हाउस पर बुला लिया।
- आरोपी के कहने पर सभी मृतक पीड़ित 1 जनवरी 2013 को करीब एक बजे सेप्टिक टैंक को साफ करने फॉर्म हाउस पर पहुंच गए। यह फार्म हाउस शहरी इलाके से दूर एक अलग जगह पर है।
- संदीप थंवर के भाई ने आरोपी नंबर 3 को संपर्क किया क्योंकि उसका भाई शाम तक घर नहीं पहुंचा था। तीसरे आरोपी ने उसे कहा कि संदीप और उसके दोनों दोस्त फार्म हाउस से दोपहर को ही निकल गए थे। हालांकि, 8:30 बजे उसे पता चला की उसके भाई की लाश सेप्टिक टैंक के टॉयलेट ब्लॉक में पाई गई है।
- पुलिस द्वारा दुर्घटना में हुई मृत्यु का केस दर्ज किया गया। 2 जनवरी 2013 को पहले और दूसरे आरोपी ने अन्य दो मृतक पीड़ित के बारे में बताते हुए कहा की उनकी लाश फार्महाउस के परिसर में एक खाली कुए में गढ़ी हुई है।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- अभियुक्त के वकील ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता और स्वीकार्यता पर आपत्ति व्यक्त की। उन्होंने एविडेंस एक्ट की धारा 65B के प्रावधानों का सख्त अनुपालन करने की मांग की।
- उन्होंने तीन सेवा प्रदाताओं के नोडल अधीकारियों के सबूत और उनके द्वारा जारी धारा 65B के तहत प्रमाण पत्रों की आलोचना की। विद्वान वकील द्वारा अपीलकर्ताओं के लिए यह आग्रह किया गया कि संदीप थवर और संजय घारू द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे 2 वोडाफ़ोन सिम का CDR नोडल ऑफ़िसर द्वारा सबसे पहले 13 March 2013 को प्रदान किया गया था।
- जबकि पुलिस उपाधीक्षक द्वारा पुलिस अधीक्षक को लिखे गए पत्र से यह मालूम पड़ता है की पुलिस के पास उनके CDR 13 मार्च के पहले से थे। यह पत्र 11 मार्च को लिखा गया था और इससे यह बात साबित होती है की अभियोजन पक्ष के पास CDR सम्बंधित जानकारी अनौपचारिक रूप से 13 मार्च के पहले से ही मौज़ूद थी। इस तर्क पर यह कहा जा सकता है कि आधिकारिक CDR जानकारी के साथ हेरफेर होने की सम्भावना स्पष्ट है।
- अभियोजन पक्ष ने उनके प्रकरण के हिसाब से CDR में हेरफेर करी है और इसीलिए अदालत को साक्ष्य के रूप में भरोसा नहीं करना चाहिए।
न्यायपीठ की राय
- नोडल अधिकारी के बयान के अनुसार, सेवा प्रदाता का एक नोडल अधिकारी अपने लॉग इन पासवर्ड का इस्तमाल करके CDR की जानकारी प्राप्त कर सकता है। नोडल अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि CDRs को उनकी उपस्थिति में प्रिंट किया गया था और उसने अपने हस्ताक्षर की भी पहचान कर ली है। तदनुसार, धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र को जारी करने के लिए नोडल अधिकारी एक सक्षम प्राधिकारी है। न्यायपीठ के अनुसार, यह प्रक्रिया धारा 65B में दी गई आवश्यकताओं के पर्याप्त अनुपालन में है।
अंतिम निर्णय
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302, 201, 120B के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त क्रमांक 1, 2, 3, 5 और 6 की दोषसिद्धि की पुष्टि की जाती है और मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा जाता है।
- CDRs को स्वीकार करने की अनुमति है।
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