अमेज़ॅन सेलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम एमवे इंडिया एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य
अमेज़ॅन सेलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम एमवे इंडिया एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य
दिल्ली उच्च न्यायालय
FAO(OS) 133/2019
न्यायाधीश तलवंत सिंह और न्यायाधीश एस मुरलीधर के समक्ष
निर्णय दिनांक: 31 जनवरी 2020
मामले की प्रासंगिकता: ऑनलाइन विक्रेताओं के खिलाफ प्रत्यक्ष बिक्री दिशानिर्देशों (Direct Selling Guidelines) की प्रवर्तनीयता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(w), 79)
- भारतीय संविधान, 1950 (अनुच्छेद 13, 19(1)(g), 73, 77)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- वर्तमान मामले में छह अपीलें दायर की गई हैं – अमेज़ॅन की ओर से एमवे, ओरिफ्लेम और मोदीकेयर लिमिटेड के खिलाफ क्रमशः तीन अपीलें; क्लाउडटेल की ओर से एमवे और ओरिफ्लेम के खिलाफ दो अपील और स्नैपडील प्राइवेट लिमिटेड की ओर से छठी अपील एमवे के खिलाफ।
- इन सभी अपीलों को उस फैसले को चुनौती देने के लिए दायर किया गया है जिसने अपीलकर्ताओं को उनके ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर प्रतिवादी के सामान बेचने से रोक दिया था। प्रतिवादियों से प्रत्यक्ष बिक्री दिशानिर्देशों (Direct Selling Guidelines) के अनुसार स्वयं को प्रत्यक्ष बिक्री संस्था (Direct Selling Entities) होने का दावा किया था।
- एमवे डायरेक्ट सेलिंग बिजनेस मॉडल (डीएसबीएम) के माध्यम से विनिर्माण और वितरण व्यवसाय में लगा हुआ है, जिसमें भारतीय ग्राहक खुद को डायरेक्ट सेलर के रूप में नामांकित करके अपना खुद का व्यवसाय संचालित करते हैं।
- एमवे की आचार संहिता के अनुसार, सभी उत्पादों को एक घोषणा के साथ चिह्नित किया जाता है कि उन्हें केवल एमवे बिजनेस ओनर्स (एबीओ) द्वारा बेचा जा सकता है।
- इसलिए, अमेज़ॅन को एमवे के उत्पादों को बेचने से रोकने के लिए एक अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की गई थी। इस बीच, भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया कि उक्त दिशानिर्देश स्वाभाव से सलाह के रूप में लेकिन उनका पालान किया जाना है और संविधान के अनुच्छेद 77 के तहत बाध्यकारी प्रभाव डालते हैं।
- इस प्रकार, न्यायाधीश द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि डायरेक्ट सेलिंग गाइडलाइन (डीएसजी) प्रकृति में बाध्यकारी थे क्योंकि “वें विक्रेताओं या प्लेटफार्मों के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करते है।”
- वर्तमान अपील तब अमेज़ॅन, क्लाउडटेल और स्नैपडील द्वारा उक्त फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई थी।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- श्री साईकृष्ण राजगोपाल, अपीलकर्ताओं के लिए: डीएसजी संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत एक कानून नहीं है क्योंकि वे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। डीएसजी केवल दिशानिर्देश हैं जिन्हें ‘कानून’ के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है और इसलिए, भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 19(1)(g) द्वारा गारंटीकृत किसी भी पेशे का अभ्यास करने या व्यवसाय, व्यापार और व्यवसाय करने के अधिकार को विनियमित नहीं कर सकते हैं।
न्यायपीठ की राय
- डीएसजी की प्रकृति पर एएसजी द्वारा प्रस्तुतीकरण ‘सलाहकार’ हो सकता है न कि ‘सबूत।’
- आक्षेपित निर्णय में यह महत्वपूर्ण रूप से अनदेखी की गई थी कि डीएसजी ‘कार्यकारी निर्देश’ के रूप में बिल्कुल भी नहीं थे।
- केवल इसलिए कि डीएसजी को राजपत्र में अधिसूचित किया गया है, वे संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत “कानून” का दर्जा प्राप्त नहीं करते हैं। इस तरह के दिशा-निर्देशों को तैयार करने का स्रोत केवल उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (The Consumer Protection Act, 2019) से पता लगाया जा सकता है। इस अधिनियम के स्वयं अधिसूचित नहीं होने के कारण, ये मसौदा दिशानिर्देश “बाध्यकारी नियमों” के स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सकते थे। इसलिए, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 73 या 77 के लिए स्रोत नहीं बनाया जा सका।
- डीएसजी का उपबंध 7(6) खरीददार पर प्रतिबंध लगाता है कि वह उत्पाद को ऑनलाइन पुनर्विक्रय नहीं कर सकता है। ऐसी स्थिति तीसरे पक्ष की तुलना में लागू करने योग्य कानून नहीं है, और हालांकि इसे बाध्यकारी माना जाता था, अनुबंध एमवे और एबीओ के बीच था जो बताता है कि एमवे केवल ऐसी शर्त के उल्लंघन के लिए एबीओ के खिलाफ आगे बढ़ सकता है और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म नहीं।
- एमवे, ओरिफ्लेम, आदि के उत्पादों की बिक्री के खिलाफ ऑनलाइन विक्रेताओं को निषेध करने के लिए दिशानिर्देशों को लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उनके पास ऑनलाइन बिक्री के अपने चैनल हैं।
अंतिम निर्णय
- आक्षेपित निर्णय को यह कहते हुए निरस्त किया जाता है कि डीएसजी ऑनलाइन विक्रेताओं के विरुद्ध प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- अंतरिम निषेधाज्ञा खारिज की जाती है।
- संबंधित प्रतिवादियों फैसले से चार सप्ताह के भीतर अपीलकर्ताओं को 50,000 रुपये देने का आदेश दिया गया।
इस केस सारांश को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। | To read this case summary in English, click here.