सुजय सेन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य
सुजय सेन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय
CRM-M 4365/2012 (O&M)
न्यायाधीश राजन गुप्ता के समक्ष
निर्णय दिनांक: 06 मार्च 2012
मामले की प्रासंगिकता: क्या आईटी एक्ट की धारा 43, 66 और 66B के तहत गिरफ्तारी के पहले जमानत दी जानी चाहिए?
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 43, 66, 66B, 72A)
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 120, 420, 406)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- याचिकाकर्ता (सुजय सेन गुप्ता) शिकायतकर्ता मेसर्स टेक्नोवा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के ग्लोबल मार्केट रिसर्च डिवीज़न के अध्यक्ष थे। उनके पास अत्यधिक गोपनीय जानकारी जैसे कि बिज़नस मॉडल, क्लाइंट डेटाबेस और रणनीतियों तक पहुंच थी।
- याचिकाकर्ता ने सह-अभियुक्त (यजना प्रकाश) के साथ “कैटालिस” और “सीआईबीसी” जैसी संस्थाओं को यह गोपनीय जानकारी छल पूर्वक डाइवर्ट कर दी। इससे शिकायतकर्ता कंपनी को भारी नुकसान हुआ है।
- याचिकाकर्ता और सह-आरोपी रितेश दुडेजा ने शिकायतकर्ता के साथ पर्याप्त शेयर रखने वाली एक नई कंपनी की स्थापना करके धोखा दिया। इसे दिखाने के लिए ईमेल प्रूफ है।
- शिकायतकर्ता ने एक एफ.आई.आर दर्ज की और जांच को गुड़गांव पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को ट्रान्सफर कर दिया गया, जिसने याचिकाकर्ता की हिरासत में जांच की मांग की। यहां याचिकाकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया है।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता के वकील श्री अशोक अग्रवाल ने तर्क दिया कि कथित अपराधों के लिए हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है और आईटी एक्ट, 2000 में हर्जाने और दंड के माध्यम से इससे निपटने के लिए आवश्यक प्रावधान हैं और जमानती कारावास 3 साल से कम है।
न्यायपीठ की राय
- हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है क्योंकि यदि एक सुरक्षात्मक आदेश से लैस है तो आरोपी के सहयोग करने की संभावना नहीं है।
- यह पता लगाना भी आवश्यक है कि आरोपी द्वारा गोपनीय जानकारी कैसे डाउनलोड और लीक की गई थी।
अन्तिम निर्णय
- अदालत का मानना है कि गिरफ्तारी से पहले की जमानत के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना निराधार है और इसलिए इसे खारिज कर दिया गया।
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