डॉ मंदीप सेठी बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
डॉ मंदीप सेठी बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय
C.W.P. 21862/2012
न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश रितु बाहरी के समक्ष
निर्णय दिनांक: 26 फरवरी 2013
मामले की प्रासंगिकता: ऋण वसूली अधिकरणों द्वारा आयोजित ई-नीलामी की वैधता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 4, 10A)
- बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध्य ऋण, 1993 (धारा 29)
- आयकर (प्रमाणपत्र कार्यवाही) नियम, 1962 (नियम 56)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- वित्त मंत्रालय ने ऋण वसूली अधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों को सभी नीलामियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित करने का निर्देश जारी किया। इन निर्देशों के खिलाफ याचिका दायर की गई है। अटैचमेंट और सेल के मामले में ऋण वसूली अधिकरण द्वारा पारित आदेशों को भी चुनौती दी गई है। हालाँकि, माननीय न्यायालय ने खुद को केवल ई-नीलामी की चुनौती तक सीमित कर दिया।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता तर्क दिया कि ऐसी नीलामी जहां बोली लेने वाले व्यक्तिगत रूप की जगह इलेक्ट्रॉनिक रूप से और उचित प्रारूप में लेते है, ऐसी नीलामी आयकर (प्रमाण पत्र कार्यवाही) नियम, 1962 के नियम 56 के तहत सार्वजनिक नीलामी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती हैं। वकील ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के Chairman and Managing Director, SIPCOT, Madras & others vs. Contromix Pvt. Ltd. by its Director (Finance) Seetharaman, Madras & another (AIR 1995 SC 1632) का हवाला दिया जहां यह माना गया था कि बेची जाने वाली संपत्ति के लिए सर्वोत्तम मूल्य सुरक्षित करना प्रमुख विचार है। यह तभी संभव हो सकता है जब बिक्री की प्रक्रिया में अधिकतम जन भागीदारी हो।
- वकील ने तर्क दिया कि दूरदराज के इलाकों में जहां कंप्यूटर सुविधा या कंप्यूटर पेशेवरों की उपस्थिति नहीं है, ई-नीलामी बेची जाने वाली संपत्ति के लिए अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के इरादे को पूरा नहीं कर पाएगी। इसलिए नीलामी की ऐसी प्रक्रिया कानूनी और वैध नहीं है।
- उत्तरदाताओं के वकील ने आईटी एक्ट की धारा 4 एवं 10A का हवाला दिया। वकील ने तर्क दिया कि इलेक्ट्रॉनिक स्कीम लिखित या प्रिंट किये गए फॉर्मेट में मांगी गई किसी भी चीज़ के लिए एक विकल्प है।
न्यायपीठ की राय
- ई-नीलामी का लाभ यह है कि प्रत्येक बोली एक सेट किये गए स्लॉट के भीतर दर्ज की जाती है और इसमें गलतियां नहीं होती है, जो अदालत के नीलामीकर्ता द्वारा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि ई-नीलामी सार्वजनिक नीलामी का दूसरा रूप है, जिसे उक्त नियमों के नियम 56 में शामिल माना जाता है। इसे नीलामी का पसंदीदा तरीका माना जाना चाहिए।
अंतिम निर्णय
- माननीय अदालत ने माना कि क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो केंद्र सरकार को ऋण वसूली अधिकरणों को निर्देश जारी करने का अधिकार देता है। इसलिए, सरकार केवल एक विशेष तरीके से सार्वजनिक नीलामी का आदेश देने के लिए ऋण वसूली अधिकरणों द्वारा अपने कार्यों के निर्वहन के दायरे में कोई निर्देश जारी करने के लिए सक्षम नहीं थी। 13 जून 2012 को जारी निर्देशों को, पारदर्शी और निष्पक्ष नीलामी करने के लिए, ऋण वसूली अधिकरणों द्वारा एक योग्य सुझाव के रूप में माना जाना चाहिए।
- इसलिए, ऋण वसूली अधिकरणों को नगरपालिका क्षेत्रों में बेची जा रही संपत्ति के मामले में ई-नीलामी की प्रक्रिया को अपनाने का निर्देश दिया जाता है। हालाँकि, ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों के संबंध में, अदालत ने अधिकरण के विवेक, जैसा कि वह उचित समझे, ई-नीलामी का आदेश देने की अनुमति दी।
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