केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम अभिषेक वर्मा
केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम अभिषेक वर्मा
(2009) 6 SCC 300
उच्चतम न्यायालय
आपराधिक आवेदन 935-36/2009
न्यायाधीश एस.बी. सिन्हा और न्यायाधीश डॉ. एम.के. शर्मा के समक्ष
निर्णय दिनांक: 6 मई 2009
मामले की प्रासंगिकता: पोर्टेबल डेटा स्टोरेज डिवाइस की स्वीकार्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 4)
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 120B)
- शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 (धारा 3, 5)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 3, 65A, 65B)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- मई 2005 में, वायु सेना मुख्यालय द्वारा एक कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बिठाई गई थी। यह पाया गया था कि विंग कमांडर एस.एल. सुर्वे ने भारतीय नौसेना के एक पूर्व अधिकारी कुलभूषण पाराशर से एक पेन ड्राइव प्राप्त की थी जिसमें नौसेना संचालन निदेशालय (डीएनओ) के बारे में जानकारी थी। नौसेना मुख्यालय ने एक बोर्ड ऑफ इंक्वायरी बिठाई। इसके बाद, तीन नौसेना अधिकारी – कश्यप कुमार, विजेंद्र राणा और विनोद कुमार झा को जानकारी लीक करने के लिए दोषी ठहराया गया था। यह भी रिपोर्ट किया गया था कि कुलभूषण पाराशर का एटलस नाम की कंपनी से संबंध थे।
- रक्षा मंत्रालय ने पत्र के द्वारा सीबीआई को जानकारी दी। उस आधार पर, सीबीआई ने कुलभूषण पाराशर और कुछ अन्य आरोपियों के खिलाफ ऊपर दिए गए कानूनों के तहत एफ.आई.आर दर्ज की।
- मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली ने 10 जुलाई 2006 को एक आदेश पारित किया, जिसमें ऊपर वर्णित अपराधों का संज्ञान लिया गया था। हालांकि, प्रतिवादी ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दिल्ली उच्च न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन किया था। वर्तमान अपील, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश से उत्पन्न हुई है जिसमें प्रतिवादियों को जमानत दे दी गई थी।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने जमानत देने में कोई चूक नहीं की है क्योंकि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई मटेरियल नहीं था जो यह दर्शाता हो कि प्रतिवादी एटलस नाम की कंपनी का एक प्रमुख अधिकारी था। यह भी साबित नहीं हुआ कि विजेंद्र राणा से बरामद हुई पेन ड्राइव प्रतिवादी के पास किसी भी समय पर थी। यह भी अस्पष्ट था कि सह आरोपी से प्रतिवादी को कोई डॉक्यूमेंट मिले थे।
- अपीलार्थी के वकील ने प्रस्तुत किया कि सह-अभियुक्त विजेन्द्र राणा के पास से बरामद पेन ड्राइव और कुलभूषण पाराशर के परिसर से जब्त किए गए दस्तावेजों में संवेदनशील जानकारी है।
न्यायपीठ की राय
- कोर्ट ने पाया कि सौंपे जाने पर पेन ड्राइव बिना सील की स्थिति में थी। इसके अलावा, पोर्टेबल डेटा स्टोरेज डिवाइस की स्वीकार्यता शक की निगाह में है क्योंकि पेन ड्राइव और प्रतिवादी के किसी भी कंप्यूटर के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है। इसके अलावा, इन स्टोरेज डिवाइस को स्वीकार्य होने के लिए एविडेंस एक्ट की धारा 65B के तहत दी गई ज़रूरतों को पूरा करना होगा। इसके बाद आईटी एक्ट की धारा 4 को भी ध्यान में लिया जाना चाहिए।
अन्तिम निर्णय
- माननीय न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश में किसी भी कमी को नकार दिया। अत: अपील खारिज कर दी गई।
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