लोक नाथ चुग बनाम पीआईओ, कड़कड़डूमा कोर्ट

यश जैनCase Summary

लोक नाथ चुग बनाम पीआईओ, कड़कड़डूमा कोर्ट

लोक नाथ चुग बनाम पीआईओ, कड़कड़डूमा कोर्ट
केंद्रीय सूचना आयोग
CIC/SA/C/2015/900106
श्री एम. श्रीधर आचार्युलू, सूचना आयुक्त के समक्ष
निर्णय दिनांक: 03 अगस्त 2015

मामले की प्रासंगिकता: एक आरटीआई आवेदन के जवाब में सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराना

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2)
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (धारा 2, 8)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • लोक नाथ चुग, अपीलकर्ता ने कहा कि उन पर कड़कड़डूमा कोर्ट के परिसर में हमला किया गया था, जहां वह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A के तहत आरोपों का सामना कर रहे अपने बेटे के लिए जमानत लेने गए थे। 09 अप्रैल 2014 को जब वह मध्यस्थता हॉल के आसपास थे तब सुबह 10 से 12 बजे के बीच बेटे की पत्नी के वकील समेत करीब 15 लोगों ने उन पर हमला किया।
  • वह चाहते थे कि मध्यस्थता केंद्र के प्रवेश द्वार और बरामदे के बीच सीसीटीवी की फुटेज मुहैया कराई जाए, साथ ही ड्यूटी पर तैनात अधिकारी द्वारा मारपीट की घटना को लेकर दर्ज कराई गई शिकायत की प्रति भी। लोक सुचना अधिकारी (PIO) और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (FAA) की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। अपीलार्थी ने इस आयोग का दरवाजा खटखटाया है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • लोक प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व कर रहे ए.के. वाधवा ने अपने लिखित निवेदन में कहा कि सुरक्षा समिति, कड़कड़डूमा कोर्ट के अनुसार सीसीटीवी फुटेज किसी भी व्यक्ति को नहीं दी जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि हर सात दिनों के बाद सीसीटीवी रिकॉर्डिंग अपने आप मिट जाती है। परोक्ष रूप से, उन्होंने यह कहा कि जिस रिकॉर्ड की मांग की जा रही है उस रिकॉर्ड का अस्तित्व नहीं है।
  • अपीलकर्ता ने कहा कि उन्होंने हाल ही में रिकॉर्डिंग भी देखी है और वे जानते हैं कि रिकॉर्ड अभी भी मौजूद है। जिस दिन घटना हुई उस दिन की रिकॉर्डिंग को रखने के लिए अपीलकर्ता ने प्राधिकरण के समक्ष गुहार लगाई है।

न्यायपीठ की राय

  • सीसीटीवी फुटेज (सूचना), पब्लिक ऑथोरिटी के पास होने की वजह से, आरटीआई के तहत पूछे जाने पर दी जानी है। आयोग यह घोषणा करता है कि यद्यपि स्थापित नीति के अनुसार सूचना को हटाया जा सकता है यदि वह सूचना आरटीआई आवेदन दाखिल करने की तिथि पर बनी रहती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक आरटीआई आवेदन का अंतिम रूप से निपटारा नहीं हो जाता, तब तक इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
  •  लोक प्राधिकरण को फुटेज का उपयोग प्रतिकूल घटना को साबित करने के लिए करना चाहिए जो कि सीसीटीवी लगाने का मूल उद्देश्य है। यदि लोक प्राधिकरण किसी भी तरह की सूचना को नष्ट करने की घटना को देखता है, तो ऐसा कृत्य भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधानों को साक्ष्य के विनाश में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए आकर्षित करेगा। आयोग अभिलेखों को नष्ट करने और सूचना से इनकार करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 20 को भी लागू कर सकता है।

अंतिम निर्णय

  • आयोग ने लोक प्राधिकरण को ऊपर बताए गए समय के लिए सीसीटीवी फुटेज की एक प्रति पेश करने का निर्देश दिया। इसे अपीलकर्ता को प्रमाण पत्र और कवरिंग लेटर के साथ एक सीडी में उपलब्ध कराया जाना था। इसे भी इस आदेश की प्राप्ति की तिथि से एक सप्ताह के भीतर अभियोजन एजेंसी को भेजा जाना चाहिए। तद्नुसार अपील का निराकरण किया जाता है।

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