बे फोर्ज बनाम नवा इंजीनियर्स एंड कंसल्टेंट्स
बे फोर्ज बनाम नवा इंजीनियर्स एंड कंसल्टेंट्स
CP (IB) 198/09/HDB/2017
राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण, हैदराबाद
श्री आर.आर. विट्टानाला, सदस्य (न्यायिक) और श्री आर. दुरईसामी, सदस्य (तकनीकी) के समक्ष
निर्णय दिनांक: 22 जनवरी 2018
मामले की प्रासंगिकता: प्राथमिक साक्ष्य के रूप में एक्सेल शीट पर विचार और दिवाला कार्यवाही में धारा 65B की प्रयोज्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(1)(o))
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 63, धारा 65A, धारा 65B)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- प्रतिवादी द्वारा बकाया का भुगतान न करने से याचिकाकर्ता परेशान है। दिनांक 24.01.2013 को परिचालन ऋण के रूप में देय राशि ₹ 46,02,625/- है। इसके अलावा ₹ 35,01,367/- की राशि नियत तारीख से 24% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के रूप में देय थी और डिफ़ॉल्ट की पहली तारीख 30.03.2013 थी।
- देय राशि उस पर्चेस ऑर्डर के लिए थी जो प्रतिवादी ने जाली प्रूफ मशीन शाफ्ट के लिए बनाया था।
- प्रतिवादी ने प्रेषण की तारीख से 60 दिनों में देय एक राष्ट्रीयकृत बैंक के क्रेडिट का एक अपरिवर्तनीय पत्र जारी करके याचिकाकर्ता को 100% भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी।
- प्रोफार्मा इनवॉयस के साथ निरीक्षण रिपोर्ट की तैयारी की प्राप्ति पर क्रेडिट पत्र तुरंत स्थापित किया जाना था।
- प्रतिवादी ने 30.03.2013 को वादी को एक ईमेल भेजकर उनसे क्रेडिट लाइन के बजाय सीधे उनसे भुगतान करने को कहा।
- वादी ने सद्भावपूर्वक प्रतिवादी के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
- प्रतिवादी ने ईमेल के माध्यम से दिनांक 25.10.2013, 22.04.2014 और 17.02.2016 को बकाया राशि का भुगतान न करने पर अपनी चूक स्वीकार की है।
न्यायपीठ की राय
- अदालत का यह विश्वास है कि ऐसी स्थिति मौजूद है जहां दायर याचिका दिवाला और दिवालियापन संहिता की धारा 9 के अनुसार है। अदालत भी मानती है कि कर्ज और चूक साबित हो गई है।
अंतिम निर्णय
- अदालत ने मालिक या पट्टेदार द्वारा संपत्ति की वसूली की अनुमति दी, जहां ऐसी संपत्ति कॉर्पोरेट देनदार के पास है।
- एविडेंस एक्ट की धारा 65B के तहत दिए गए इस बचाव को कि एक्सेल शीट प्राथमिक डिजिटल साक्ष्य नहीं है, खारिज कर दिया गया था ।
- अदालत ने IBC के सभी प्रावधानों का पालन करने का आदेश दिया क्योंकि दिवाला कार्यवाही शुरू होनी थी।
- आईआरपी को प्रतिवादियों को सुनवाई का मौका देना चाहिए ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किया जा सके।
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