राम सिंह और अन्य बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
राम सिंह और अन्य बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
दिल्ली उच्च न्यायालय
Crl. Rev. P. 124/2013
न्यायाधीश जी.पी. मित्तल के समक्ष
निर्णय दिनांक: 7 मार्च 2013
मामले की प्रासंगिकता: कॉम्पैक्ट डिस्क (CD) एक दस्तावेज है या नहीं?
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2)
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता,1973 (धारा 327, 482)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 145, 146, 155)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- याचिकाकर्ताओं ने माननीय अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दिनांक 08.02.2013 के आदेश को रद्द करने के लिए इस न्यायालय में याचिका दायर की है। इस आदेश में माननीय अपर सत्र न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता की प्रार्थना को इस लिए ख़ारिज कर दिया था कि उनका इंटरव्यू CrPC की धारा 327(3) उल्लंघन करता है और किसी भी समाचार चैनल को दिया गया इंटरव्यू को विश्वसनीयता से नहीं देखा जा सकता है।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बिपिन शांतिलाल पांचाल बनाम गुजरात राज्य (2001 3 SCC 1) का उल्लेख किया और तर्क किया कि अगर वीडियो सीडी की स्वीकार्यता के रूप में कोई आपत्ति थी, तो अपर सत्र न्यायाधीश को इसे दर्ज करना चाहिए था और याचिकाकर्ता को शिकायतकर्ता की प्रतिपरीक्षा करने का मौका भी दिया जाना था, अगर शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयान में कोई बदलाव था। इसके बाद अधिवक्ता ने गुजरात राज्य बनाम शैलेन्द्र कमलकिशोर पांडे और अन्य (2008 Cri.L.J, 953) का भी उल्लेख किया जिसमे इसी तरह की परिस्थति थी।
- राज्य की ओर से अधिवक्ता ने उल्लेख किया कि जब बलात्कार के अपराध की जाँच और परिक्षण कैमरा के सामने होता है, तो धारा 327(2) के तहत अदालत की कार्यवाही के बारे में बिना अदालत की अनुमति के छापना गैर कानूनी है। इसी आधार पर दिनांक 04.01.2013 को ज़ी न्यूज़ को शिकायतकर्ता द्वारा दिया गया इंटरव्यू गैर कानूनी है। माननीय अधिकवक्ता ने रानू हज़ारिका बनाम असम राज्य ((2011) 4 SCC 798) का उल्लेख किया और कहा कि अवैध रूप से लिए गए साक्ष्य को अनुमति देने से अवैधता को और बढ़ावा मिलेगा।
- इसके बाद राज्य बनाम नवजोत संधू (2005 11 SCC 600), सिद्धार्थ वशिष्ठ बनाम राज्य (2010 6 SCC 1) का जिक्र करते हुए, अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अदालत ने न केवल इंटरव्यू पर गौर करने से इनकार कर दिया, बल्कि यह भी देखा कि मीडिया का इंटरव्यू एक निष्पक्ष जांच में बाधा डालता है। मीडिया को पत्रकारिता के कार्य करने चाहिए और उस तरीके से कार्य नहीं करना चाहिए जो आपराधिक न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करते है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक वीडियो सीडी को लिखित रूप में एक पिछला कथन नहीं कहा जा सकता है और इसका उपयोग गवाह की विश्वसनीयता ख़त्म करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
न्यायपीठ की राय
- गवाह की प्रतिपरीक्षा में सीडी को इस्तेमाल करने के लिए उसका प्रासंगिक और प्रामाणिक होना जरुरी है। साक्ष्य के रूप में सीडी को मिलने वाला महत्व उसके स्वीकार्यता से अलग होगा। अंततः सीडी की वास्तविकता स्थापित करने का दायित्व बचाव पक्ष का ही है। जब बचाव पक्ष सीडी की वास्तविकता को स्थापित कर देगा, उसके बाद ही निचली अदालत उसके स्वीकार्यता के प्रश्न पर चर्चा करेगी।
अंतिम निर्णय
- इन्हीं कारणों से निचली अदालत द्वारा पारित किये गए आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है। वीडियो सीडी को उपयोग करने की अनुमति प्रदान करी जाती है और इस आदेश की एक प्रति माननीय अपर सत्र न्यायाधीश को प्रेषित की जानी चाहिए।
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