राजीव पुरुषोत्तमन बनाम एम.सी. गोपाल पिल्लई और अन्य
राजीव पुरुषोत्तमन बनाम एम.सी. गोपाल पिल्लई और अन्य
2012 IndLaw KER 3163
केरल उच्च न्यायालय
CRMC 3452/2011
न्यायाधीश एन. बालाकृष्णन के समक्ष
निर्णय दिनांक: 31 जनवरी 2012
मामले की प्रासंगिकता: CD में रिकॉर्ड की गई बातचीत की स्वीकार्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (धारा 138)
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 3, 64, 65)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- आरोपी ने अनुलग्नक ए के आदेश को रद्द करने के लिए इस न्यायालय के दरवाजे पर दस्तक दी है। अभियुक्त के खिलाफ एन.आई. एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा चल रहा है। प्रतिवाद के दौरान, याचिकाकर्ता ने CD में रिकॉर्ड किये गए विडियो को स्वीकार करने के लिए विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर किया। उसके अनुसार 20 अगस्त 2008 को उसके निवास स्थान पर और 03 अप्रैल 2009 को कोर्ट हॉल के पास में उसकी बातचीत शिकायतकर्ता से हुई थी जिसे रिकॉर्ड कर लिया गया था। याचिकाकर्ता के अनुसार यह बातचीत मामले की असत्यता को उजागर करने में उपयोगी साबित होगी।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- अभियुक्त के वकील ने प्रस्तुत किया कि जब तक सीडी प्रस्तुत करने वाला पक्ष यह साबित नहीं करता कि वह किन परिस्थितियों में रिकॉर्ड की गई थी, तब तक उस सीडी की प्रमाणिकता की बात बोर्ड पर नहीं रखी जा सकती। CD के कंटेंट की स्वीकार्यता को बाद में निर्धारित किया जाना चाहिए, जिसके लिए सीडी को अदालत में ही चलाया जा सकता है। वकील ने आर.एम. मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य [AIR 1973 SC 157] का भी हवाला दिया।
- शिकायतकर्ता के वकील ने 10 फरवरी 2010 को पारित दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले- देवेश कुमार बनाम राज्य का हवाला दिया। इस प्रकरण में यह बात सामने आयी थी कि न्यायालय कंप्यूटर द्वारा निकाली गई शीट्स को तब तक स्वीकार नहीं करेगा जब तक कि पक्षकार उसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड साबित नहीं करता।
- शिकायतकर्ता के वकील ने पेरुमल बनाम स्टार टूर्स एंड ट्रैवल्स (इंडिया) लिमिटेड [2010 (3) KLT SN 15 (C.No.18)] का भी हवाला देते हुए प्रस्तुत किया कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (2) के तहत दी गई शर्तों पर अमल नहीं किया गया हो। इसके साथ ही उक्त अधिनियम की धारा 65 (4) के अधीन प्रमाण पत्र का होना भी आवश्यक है।
न्यायपीठ की राय
- पीठ का मानना है की मध्यस्थता के दौरान एक पार्टी अपनी अदालत के सामने दायर की गयी प्रार्थनाओं के साथ जुड़े हुए मुद्दे भी मध्यस्थ के सामने रख सकती है जिससे उन्हें पूरे मामले से अवगत कराया जा सके। मध्यस्थता के दौरान हुई बातचीत को रिकॉर्ड करके उसका फायदा उठाना या उसे सबूत के रूप में पेश करना उचित नहीं होगा। अगर इस बातचीत को अवैध रूप से रिकॉर्ड किया गया है, ऐसे में अदालत को सीडी पर निहिर निर्भरता नहीं रखना चाहिए। साक्ष्य के रूप में इस सीडी के संभावित मूल्य को मजिस्ट्रेट द्वारा विचार किया जायेगा जो की अभियुक्त या ऐसा कोई व्यक्ति जो इस सन्दर्भ में सक्षम हो अदालत के समक्ष गवाही दे।
अन्तिम निर्णय
- यदि अभियुक्त उक्त सीडी को साक्ष्य में लाना चाहता है, तो उन्हें यह साबित करना होगा की सीडी कैसे प्राप्त हुई और विद्वान् मजिस्ट्रेट कानून के अनुसार मामले में फैसला सुना सकते है।
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