पूठोली दामोदरन नायर बनाम बाबू
पूठोली दामोदरन नायर बनाम बाबू
(2006) 3 CCR 383
केरल उच्च न्यायालय
रिट याचिका (सिविल) 35871/2003
न्यायाधीश के.आर. उदयभानु के समक्ष
निर्णय दिनांक: 30 मार्च 2005
मामले की प्रासंगिकता: टेप रिकॉर्ड की स्वीकार्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(1)(t), 2(1)(o))
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 63, 65A, 65B)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- रिट याचिकाकर्ता, जो O.S. No. 210/02 में प्रतिवादी है, ने मुंसिफ के उस आदेश को रद्द करने की मांग की है जिसमें उसके द्वारा प्रस्तुत की गई मैग्नेटिक टेप को कोर्ट में चलाने के आग्रह को नकार दिया गया था। उक्त वाद चेक पर लिखी राशि की पुष्टि के लिए दायर किया गया था।
- विवादित चेक के लेनदेन के वक्त उसकी वादी से हुई पूरी बातचीत को टेप में रिकॉर्ड कर लिया गया था।
- याचिकाकर्ता को वादी ने यह विश्वास दिलाया था कि उसकी कैबिनेट स्तर तक अच्छी जान-पहचान है और सिर्फ 1,75,000/- रुपयों का पेमेंट करने पर वह उसके बेटे को बस कंडक्टर की सरकारी नौकरी दिलवा देगा। तदनुसार, प्रतिवादी(याचिकाकर्ता) ने 1,25,000/- नकद दिए और बची हुई राशि के लिए 50,000/- रुपयों का चेक जारी किया गया।
- बाद में, प्रतिवादी को यह विश्वास हुआ कि उसके बेटे का चयन केवल उसकी योग्यता के आधार पर हुआ है। इसमें वादी का कोई हस्तक्षेप नहीं था। इसके बाद, प्रतिवादी ने उक्त चेक के पेमेंट को रोकने के लिए उसके बैंक से संपर्क किया।
- वादी और प्रतिवादी के बीच में हुई बातचीत को प्रतिवादी के बेटे ने टेप में रिकॉर्ड किया था।
- इससे पहले कि मामला सबूत को प्रस्तुत करने के लिए पोस्ट होता, रिकॉर्डिंग की सत्यता आर प्रमाणिकता हेतु उसकी आवाज़ की सही पहचान करने के लिए एक अंतरिम आवेदन दायर किया गया था।
- प्रतिवादी/रिट याचिकाकर्ता के अनुसार, टेप रिकॉर्डिंग एक महत्वपूर्ण सबूत है क्यूंकि चेक लेनदेन के दौरान हुई बातचीत का विस्तृत रूप उस टेप में मौजूद था।
न्यायपीठ की राय
- पीठ का विचार था कि रिकॉर्ड की हुई आवाज़ की तुलना के लिए गवाह की आवाज़ को रिकॉर्ड करने की अनुमति कोर्ट द्वारा दी जा सकती है। ऐसी तुलना किसी भी कानून में वर्जित नहीं है। यह बात Dial Singh v. Rajpal (AIR 1969 P&H 350) और Sumitra Debi v. Calcutta Dyeing & Bleaching Works (AIR 1976 Cal 99) में पाई गई है।
- Sumitra Debi v. Calcutta Dyeing & Bleaching Works (AIR 1976 Cal 99) मामले में कोर्ट ने यह चेतावनी दी थी की टेप पर भरोसा करने से पहले न्यायालय को सावधानी पूर्वक वास्तविक टेप और छेड़छाड़ की हुई टेप के बीच में फर्क करना चाहिए।
- Joginder Kaur v. Surjit Singh, AIR 1985 P&H 128 मामले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(iii) के तहत तलाक को अनुमति देने वाले हुक्मनामा(डिक्री) के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर अपील को इस आधार पर अनुमति दी गई थी की पत्नी एक मानसिक रोग (schizophrenia) की शिकार है और उसने इस बात की पुष्टि के लिए टेप में रिकॉर्ड की गई बातचीत पर आंशिक भरोसा जताया था। लेकिन उसकी रिकॉर्डिंग को इस आधार पर नकार दिया गया था कि पत्नी की आवाज़ की तुलना/पहचान रिकॉर्ड की हुई आवाज़ से नहीं की गई थी।
अन्तिम निर्णय
- रिट याचिका को स्वीकार किया गया और रिट याचिकाकर्ता/प्रतिवादी को अदालत में टेप रिकॉर्डिंग को सबूत के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति है।
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