निर्मलजीत सिंह नरूला बनाम इंडिजॉब्स

यश जैनCase Summary

निर्मलजीत सिंह नरूला बनाम इंडिजॉब्स एट hubpages.com और अन्य

निर्मलजीत सिंह नरूला बनाम इंडिजॉब्स एट hubpages.com और अन्य
दिल्ली उच्च न्यायालय
सिविल वाद (मूल पक्ष) 871/2012
न्यायाधीश मनमोहन सिंह के समक्ष
निर्णय दिनांक: 30 मार्च 2012

मामले की प्रासंगिकता: निर्मल बाबा के खिलाफ मानहानि की सामग्री हटाना और सीपीसी की धारा 151  के साथ आईटी अधिनियम की  धारा 79 की प्रयोज्यता

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2, 69, 79)
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (धारा 151)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • वादी एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है, जो निर्मल बाबा के नाम से प्रसिद्ध है और नियमित रूप से “समागम” नाम की सभाओं का संचालन करता है, जिसे 30 से अधिक दूरदर्शन चैनलों द्वारा प्रतिदिन प्रसारित किया जाता है। उनका दावा है कि भारत और विदेश में उनके लाखों अनुयायी हैं और एक महीने में 10 लाख से अधिक अनुयायी उनकी वेबसाइट www.nirmalbaba.com पर आते है।
  • पहला प्रतिवादी, दुसरे प्रतिवादी की वेबसाइट www.nirmalbaba.com पर एक हबर (hubber) है। ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से प्रतिवादी 1 और प्रतिवादी 2 के बीच में वेबसाइट पर कमाई की एक व्यापारिक व्यवस्था है।
  • वादी के अनुसार, पहले प्रतिवादी ने वेबसाइट पर वादी के अनुयायियों को आकर्षित करने और ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से गैरकानूनी कमाई करने के इरादे से वेबसाइट पर वादी के बारे में जानबूझकर अपमानजनक लेख लिखे हैं, जिससे वादी की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचा है।
  • वादी ने दुसरे प्रतिवादी को 29 नवम्बर 2011 को बदनाम करने वाले लेखों को हटाने के लिए cease and desist नोटिस भेजा। उसने पहले प्रतिवादी का नाम एवं उससे संपर्क की जानकारी देने के लिए भी कहा। इसके जवाब में दिनांक 01 दिसंबर 2011 को दुसरे प्रतिवादी ने उक्त लेखों को हटाने से इस आधार पर मना कर दिया कि लेख केवल एक लोकप्रिय हस्ती के बारे में मतभेद व्यक्त करते है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • वादी के विद्वान वकील ने दुसरे प्रतिवादी की वेबसाइट के उपयोग की शर्तों के खंड 4 का जिक्र किया जो स्पष्ट रूप से कहता है की वेबसाइट पर किसी भी प्रकार के मानहानि के बयान प्रकाशित नहीं होगे।
  • वकील ने यह भी तर्क दिया है कि हालांकि सी.पी.सी की धारा 80 वाद दायर करने से पहले सरकार को नोटिस भेजने की बात करती है लेकिन यह अनिवार्यता वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होती है। इसका कारण यह है कि प्रस्तुत किये गए तथ्य तीसरे और चौथे प्रतिवादी के कृत्य के सम्बन्ध में नहीं है। इसलिए इस मामले में सी.पी.सी की धारा 80 के तहत नोटिस की ज़रूरत नहीं है।
  • इसके अलावा, उसने राम कुमार और आनंद बनाम राजस्थान राज्य के (2008) 10 SCC 73 के पैरा 14 और 15 का उल्लेख किया। प्रतिवादी क्रमांक 3 और 4 के खिलाफ किसी भी तरह के अंतरिम आदेश की मांग नहीं की गई है, जबकि ये प्रार्थना की गयी है की ये दोनों प्रतिवादी मानहानिकारक पेज को ब्लॉक करें जिससे वादी के हितों की रक्षा की जा सकें।

न्यायपीठ की राय

  • आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79 और 2(1)(w) के अनुसार, इंटरमीडियरी होने की वजह से, दूसरा प्रतिवादी कानून प्रवर्तन एजेंसीयों को पहले प्रतिवादी की पहचान बताने के लिए आबद्ध है।

अन्तिम निर्णय

  • यह निर्देशित किया जाता है कि sninpअगली तारीख पर, दूसरा प्रतिवादी पहले प्रतिवादी की पहचान सम्बन्धी पूरी जानकारी प्रदान करेगा। इसके साथ ही वह पहले प्रतिवादी का ऑथर लॉग इन डाटा- कांटेक्ट डिटेल्स , IP एड्रेस, रजिस्ट्रेशन डेटा और निवास स्थान की जानकारी कोर्ट को मोहर लगे हुए कवर में देगा।

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