उज्जल दासगुप्ता बनाम राज्य
उज्जल दासगुप्ता बनाम राज्य
दिल्ली उच्च न्यायालय
Crl. MC 1255/2008 & CRL MA 4760/2008
न्यायाधीश एस. मुरलीधर के समक्ष
निर्णय दिनांक: 25 अप्रैल 2008
मामले की प्रासंगिकता: शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 के तहत अभियुक्त को साक्ष्य की प्रति उपलब्ध कराना
सम्मिलित विधि और प्रावधान
• शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 (धारा 3, 4, 5, 9, 14)
• भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 409, 201, 120बी)
• आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 173, 207)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- याचिकाकर्ता एक सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर थे एवं RAW के साथ काम करते थे। उन्होंने सितंबर में, इंडो यूएस साइबर सिक्योरिटी फोरम के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भाग लिया और वहां उनकी मुलाकात रोसाना मिन्चेव से हुई।
- उन्हें सह-अभियुक्त से मिली जानकारी के आधार पर उन्होंने अपने ऑफिस से गुप्त दस्तावेजों को एक विदेशी एजेंट से साथ साझा किया।
- याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और पूछताछ के बाद तीन पेन ड्राइव बरामद हुई जिसमें उसने गुप्त जानकारी संग्रहीत की थी; यह पाया गया कि उसने अपने आधिकारिक लैपटॉप पर डेटा वर्गीकृत किया था। वो इसे अपने घर ले आये , अपने घर के कंप्यूटर पर डेटा पर काम किया और पेन ड्राइव में जानकारी डाल दी।
- याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) द्वारा पारित 19.4.2008 के एक आदेश को चुनौती दी जिसमे प्रतिवादियों द्वारा कुछ विशेष दस्तावेजों को उपलब्ध कराने के लिए शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 के तहत याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने धर्मबीर बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो का हवाला देते हुए कहा कि दस्तावेज़ों को केवल सिमित आधार पर अस्वीकार किया जा सकता है, जब दस्तावेज बहुत ही ज्यादा हो और ऐसी परिस्थति में व्यक्तिगत रूप से या फिर अधिवक्ता के द्वारा निरिक्षण करने देना चाहिए।
- उन्होंने द सुपरिन्टेन्डेन्ट एंड लीगल रीमेम्ब्रेंसीर ऑफ़ लीगल अफेयर्स बनाम सत्यन भौमिक का भी हवाला दिया कि धारा 14 उन दस्तावेजों की प्रतियों को अभियुक्त का अधिकार नहीं छीनता है, जो अभियोजन पक्ष OSA के उद्देश्य के लिए गुप्त दस्तावेजों के रूप में दावा करता है।
- प्रतिवादी के वकील ने इस आधार पर अन्य दस्तावेजों को उपलब्ध कराने की याचिका का विरोध किया कि इनमें से कुछ दस्तावेज गुप्त और वर्गीकृत हैं, और यदि अभियुक्त को दिया जाता है तो वह OSA के निषेध को आकर्षित करेगा।
न्यायपीठ की राय
- केवल इसलिए कि मामला OSA के तहत है, कानूनी स्थिति अलग नहीं हो सकती। अंतर केवल इतना है कि अभियोजन जोर देकर और सही तरीके से कह सकता है कि न तो अभियुक्त और न ही अभियुक्त के वकील को दस्तावेजों को सार्वजनिक करने या किसी भी व्यक्ति पर पास करने या किसी भी तरीके से उन्हें प्रसारित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यदि, वास्तव में, आरोपी या उनके वकील इस निषेध का पालन नहीं करते हैं, तो वे OSA के तहत अपराध करने का जोखिम उठाते हैं।
अन्तिम निर्णय
- अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) द्वारा लगाया गया आदेश कानून में सही नहीं है है और इसलिए न्यायालय द्वारा उसे रद्द कर दिया गया। आरोपी को, अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए दस्तावेजों की जांच करने का अधिकार है।
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