श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ
श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ
(2015) 5 एससीसी 1
WP (Crl.) 167/2012
न्यायधीश चेलमेश्वर और न्यायाधीश आर एफ नरीमन के समक्ष
निर्णय दिनांक: 24 मार्च 2015
मामले की प्रासंगिकता: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A की संवैधानिक वैधता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 66A, 69A, 79)
- भारतीय संविधान (अनुच्छेद 19(1)(a), 19(2))
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- 2012 में शिवसेना के प्रमुख बाल ठाकरे की मौत द्वारा लाये गए एक बैंड के बारे में निराशा जताने के बाद दो लड़कियों को गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने अपने विचार फेसबुक पर पोस्ट करें थे।
- उन्हें बाद में छोड़ दिया गया और उनके खिलाफ सभी आपराधिक आरोप भी हटा दिए गए। लेकिन देश गिरफ्तारी को लेकर उग्र था। यह माना जा रहा था कि पुलिस ने आईटी एक्ट की धारा 66A द्वारा दिए गए अधिकार का दुरुपयोग किया है और एक मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी एक्ट या उसके भीतर किसी भी धारा की संवैधानिक वैधता से संबंधित याचिकाओं को इस केस में एक साथ सुना।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- श्री सोली जे. सोराबजी, याचिकाकर्ता के लिए: धारा 66A, अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रत्याभूत वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन लेता है और अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तियुक्त निर्बंधन से भी नहीं बचा है। यह धारा अस्पष्ट है और इसमें साधारण खंड अधिनियम की कोई परिभाषा नहीं है।
- श्री तुषार मेहता, भारतीय संघ के लिए: संसद समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है और अदालत को कानून के प्रावधानों को सिर्फ पढ़ना या उसकी व्याख्या करनी चाहिए। अस्पष्टता एक कानून को असंवैधानिक घोषित करने का आधार नहीं है।
न्याय पीठ की राय
- अभिव्यक्ति के तीन पहचाने हुए तरीके हैं – चर्चा, वकालत और उत्तेजना। मात्र चर्चा या वकालत वाक की स्वतंत्रता के तहत आती है लेकिन उत्तेजना अनुच्छेद 19(2) के तहत दिए हुए युक्तियुक्त निर्बंध के तहत आती है। धारा 66A अनुच्छेद 19(1) में दिए हुए तत्वों को उत्तीर्ण नहीं करती है।
- धारा 66A की परिभाषा इतनी व्यापक है कि कोई भी भाषण इसके दायरे में आएगा। इस धारा का वाक और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर निराशाजनक प्रभाव है।
अंतिम निर्णय
- धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करती है और अनुच्छेद 19(2) से बची नहीं है इसलिए उसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।
- धारा 69A वैध है।
- धारा 79(3)(b) के संकुचित व्याख्या के अधीन धारा 79 वैध है।
निजी राय
- धारा 66A को पूरी तरह से हटाने की जरूरत नहीं थी और यह निर्णय थोड़ा कठोर लगता है। धारा 79 और 66A की व्याख्या को कम करके उसे संवैधानिक बनाया जा सकता था।
- आधुनिक युग में व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह सकारात्मक कदम है। यह ऐसा समय है जहां हर व्यक्ति के अपने कुछ विचार होते हैं जिसे वें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आसानी से अभिव्यक्त करते है।
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