स्वामी रामदेव और अन्य बनाम फेसबुक और अन्य
स्वामी रामदेव और अन्य बनाम फेसबुक और अन्य
263 (2019) DLT 689
दिल्ली उच्च न्यायालय
CS (OS) 27/2019
न्यायाधीश प्रतिभा एम. सिंह के समक्ष
निर्णय दिनांक: 23 अक्टूबर 2019
मामले की प्रासंगिकता: मानहानि की सामग्री को इन्टरनेट से पूरी तरह से हटवाना
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 79)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- वादी का आरोप है कि ‘गॉडमैन टू टाइकून: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ बाबा रामदेव’ नामक पुस्तक पर आधारित वीडियो के साथ साथ विभिन्न मानहानिकारक टिप्पणियों और सूचनाओं को प्रतिवादियों के प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया जा रहा है।
- वादी ने प्रस्तुत किया कि उक्त पुस्तक में छापी गई मानहानिकारक सामग्री CM(M) 556/2018 में पारित एक फैसले का विषय था, जिसमें इस अदालत के विद्वान एकल न्यायाधीश ने प्रकाशक और लेखक को आपत्तिजनक भागों को हटाए बिना पुस्तक के प्रकाशन, वितरण और बिक्री न करने का आदेश दिया था।
- वीडियो में बताये गए आरोप, जो प्रतिवादी के प्लेटफॉर्म पर अपलोड किए गए हैं, वें वास्तव में पुस्तक में दिए गए मानहानिकारक आरोप हैं जिन्हें हटाने का निर्देश पहले ही दिया जा चुका है।
- प्रकाशक ने उक्त फैसले को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी और वह मामला अभी फ़िलहाल लंबित है। हालांकि यह प्रस्तुत किया जाता है कि उक्त आदेश पर कोई रोक नहीं है।
- क्या उक्त URL भी वैश्विक स्तर पर ब्लॉक होने के योग्य हैं? इस सवाल पर अगली तारीख को सुनवाई होगी।
अधिवक्ताओं के प्रमुख तर्क
वादी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दर्पण वाधवा ने प्रस्तुत किया कि यदि कोई मानहानिकारक लेख, पुस्तक या कोई अन्य सामग्री प्रकाशित की जाती है, तो उसका प्रकाशक मानहानि के लिए ज़िम्मेदार है। प्रतिवादी आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत इस आधार पर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं कि वे मध्यस्थ हैं। चूंकि वे दावा करते हैं कि उनकी भूमिका मध्यस्थ की है, वे कानून के तहत ड्यू डिलिजेंस का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
- श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ (AIR 2015 SC 1523) के ऐतिहासिक फैसले के अनुसार, धारा 79 में “वास्तविक जानकारी” वाक्यांश को न्यायालय का आदेश समझा जाएगा। एक बार जब न्यायालय आदेश पारित करता है, तो वे सामग्री को इन्टरनेट से हटाने के लिए बाध्य है। इसके साथ ही आदेश को लागू करने के लिए मध्यस्थ क्षेत्रीय विस्तार पर कोई आपत्ति नहीं उठा सकते।
- उन्होंने आगे कहा कि यदि प्रतिवादी दावा करते हैं कि उनके पास न्यायालय के आदेशों का पालन करने का दायित्व नहीं है, तो वे अधिनियम की धारा 79 के तहत सुरक्षा लेने के हकदार नहीं हो सकते।
- उन्होंने आगे कहा कि एक मध्यस्थ की भूमिका यह तय करने की नहीं हो सकती है कि सामग्री मानहानिकारक है या नहीं, बल्कि निष्क्रिय रहकर न्यायालय के आदेशों का पालन करने की है। एक मध्यस्थ उस व्यक्ति की ओर से बहस नहीं कर सकता जिसने सामग्री उसके प्लेटफार्म पर अपलोड की है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि सामग्री तक निरंतर पहुंच के कारण प्रतिवादी को ऐसा नुकसान उठाना पड़ रहा है जिसकी वापस भरपाई नहीं हो सकती है। जबकि दूसरी ओर प्रतिवादी को सामग्री के हटाने पर कोई नुकसान नहीं है।
फेसबुक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया कि वादी द्वारा उन व्यक्तियों को फंसाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है जिनकी जानकारी दी गई है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि मानहानि की विषय वस्तु अलग-अलग देशों में एक जैसी नहीं होती। इसलिए, सामग्री को वैश्विक रूप से हटाने का आदेश पारित करना न्यायालयों के सामुहिकता के सिद्धांत (principle of comity) के विपरीत होगा और इसके परिणामस्वरूप कानूनों का टकराव होगा।
अंतिम निर्णय
- प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे वैश्विक आधार पर वादपत्र के साथ संलग्न सूची में ऐसे सभी वीडियो/वेबलिंक/यूआरएल तक पहुंच को हटाये, ब्लॉक करें, प्रतिबंधित/अक्षम करें, जिन्हें भारतीय आईपी एड्रेस से अपलोड किया गया है।
- जहां तक भारत के बाहर से अपलोड किए गए वादपत्र से जुड़ी सूची में यूआरएल/लिंक का संबंध है, प्रतिवादी को निर्देश दिया जाता है कि वे एक्सेस को ब्लॉक करें और उन्हें भारतीय डोमेन में देखे जाने से बंद करें और सुनिश्चित करें कि भारत में उपयोगकर्ता उसे एक्सेस करने में असमर्थ रहें।
- वादी को यह पता चलने पर कि किसी भी अन्य URL में मानहानिकारक/अपमानजनक सामग्री है, जैसा कि वर्तमान आदेश में चर्चा की गई है, वादी प्लेटफ़ॉर्म को सूचित करेंगे, जो तब वैश्विक आधार पर या भारत डोमेन के लिए उक्त URL तक पहुंच को ब्लॉक कर देगा।
- यदि प्रतिवादी, वादी से नोटिस प्राप्त करने पर यह मानते हैं कि सामग्री मानहानिकारक नहीं है, तो वे वादी को सूचित करेंगे और वादी कानून के अनुसार उनके उपचार की मांग करेंगे।
इस केस के सारांश को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें | | To read this case summary in English, click here.