गिरवर सिंह बनाम सीबीआई
गिरवर सिंह बनाम सीबीआई
(2016) 5 RCR (Cri) 757
दिल्ली उच्च न्यायालय
आपराधिक आवेदन 263/2009
न्यायाधीश विपिन सांघी के समक्ष
निर्णय दिनांक: 19 अप्रैल 2016
मामले की प्रासंगिकता: मूल साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने पर धारा 65B की प्रयोज्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(1)(t), 2(1)(i), 2(1)(r))
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 3, 65B)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- एक शिकायत के आधार पर सीबीआई को मामला दर्ज करने का काम सौंपा गया था। एक फर्म दिल्ली सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट के साथ रजिस्टर्ड थी और यह डीजल जनरेटर सेट के स्पेयर पार्ट्स के कारोबार में शामिल थी।
- इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों में से एक ने रिश्वत मांगी थी। यदि रिश्वत नहीं दी गई तो उक्त अधिकारी ऑडिट में आपत्तियां उठायेगा।
- अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच हुई बातचीत को सैमसंग डिजिटल रिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया गया था। इसे मौके पर सुना गया और शिकायतकर्ता (PW-3) और अपीलकर्ता संख्या 1 के बीच रिश्वत के लेनदेन के बारे में हुई चर्चा की पुष्टि हुई। डिजिटल सैमसंग रिकॉर्डर में रिकॉर्ड की गई बातचीत को दूसरे कैसेट में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसे मौके पर ही सील किया था।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता/अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि डिजिटल टेप रिकॉर्डर, जिसका उपयोग बातचीत को रिकॉर्ड करने के लिए किया गया था, उसे न तो अदालत के समक्ष पेश किया गया और ना ही इसकी जांच की गई। इसके अलावा, बातचीत से तैयार किए गए ट्रांसक्रिप्ट मेमो के संबंध में धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया गया था।
- विशेष लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि मूल रिकॉर्डिंग को दो कैसेट में स्थानांतरित किया गया था। इनमें से एक कैसेट को सील कर दिया गया था और दूसरे को सील नहीं किया गया था। इसके बाद, मूल रिकॉर्डिंग डिलीट कर दी गई थी। इसके अलावा, धारा 65B लागू नहीं है क्योंकि ट्रांसक्रिप्ट को केवल कंप्यूटर में टाइप किया गया है और ईमेल या डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित दस्तावेज़ की तरह यह कंप्यूटर में नहीं आया है।
न्यायपीठ की राय
- जब कोई दस्तावेज़ आईटी एक्ट की धारा 2(1)(t) की परिभाषा के अंतर्गत एक ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ है, तो इसे साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B में उल्लिखित शर्तों का अनुपालन करते हुए एक प्रमाण पत्र के साथ दायर किया जाना चाहिए। हालांकि, अगर मूल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड अदालत में पेश किया जाता है, तो धारा 65B का अनुपालन अनिवार्य नहीं है।
अंतिम निर्णय
- रिश्वत की मांग शिकायतकर्ता की गवाही से सिद्ध होती है। रिश्वत का लेना और उसकी अधिकारियों द्वारा वसूली भी उचित संदेह से परे साबित होती है।
- चूंकि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दो नए कैसेट में स्थानांतरित कर दिया गया था और मूल रिकॉर्डिंग को डिलीट कर दिया था और साथ ही बहुत लम्बे समय के लिए अदालत में पेश नहीं होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य अदालत में अस्वीकार्य है।
- रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों का आकलन करते हुए, एकमात्र निष्कर्ष यह निकला कि अपीलकर्ताओं ने रिश्वत की मांग उठाई, और रिश्वत की राशि स्वीकार कर ली जिसे अधिकारियों ने बरामद किया। तदनुसार, दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा जाता है।
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