मनोज ओसवाल बनाम महाराष्ट्र राज्य
मनोज ओसवाल बनाम महाराष्ट्र राज्य
बॉम्बे उच्च न्यायालय
आपराधिक रिट याचिका 314/2012
न्यायाधीश एस.सी.धर्माधिकारी और न्यायाधीश एस.बी. शुक्रे के समक्ष
निर्णय दिनांक: 6 अगस्त 2013
मामले की प्रासंगिकता: धारा 66A की प्रयोज्यता
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- भारतीय संविधान, 1950 (अनुच्छेद 226)
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 482)
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 66A)
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 500)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- मनोज ओसवाल (याचिकाकर्ता) ने श्रीधनंजय दिवाकर (शिकायतकर्ता) द्वारा दायर प्राथमिकी को रद्द करने के लिए एक रिट याचिका दायर की है। शिकायतकर्ता प्रतिवादी की कंपनी मैसर्स सकल पेपर्स प्राइवेट लिमिटेड में एक कर्मचारी है।
- याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया गया है कि उसने कंपनी के किसी एक कार्यक्रम में जहाँ याचिकाकर्ता को आमंत्रित नहीं किया गया था वहां पर्चे बाँटें जिसमें उसने प्रतिवादी कंपनी के अध्यक्ष श्री प्रतापराव गोविंदराव पवार के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने कार्यक्रम में आये लोगों के साथ दो वेबसाइटों की लिंक भी साझा की, जिन्होंने प्रतापराव के बारे में और अधिक अपमानजनक बयान दिए।
- शिकायतकर्ता को उन्ही में से एक पर्चा मिलने पर यह यकीन हुआ कि ये सभी कार्य उसे बदनाम करने के लिए किए गए थे, तो उसने आईपीसी की धारा 500 और आईटी एक्ट की धारा 66A के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाई।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शिकायत किसी अपराध का खुलासा नहीं करती है। इसलिए प्राथमिकी अस्पष्ट है। अपराध के आवश्यक तत्व भी गायब थे। प्राथमिकी को दर्ज करने में देरी हुई थी क्योंकि शिकायतकर्ता एक शक्तिशाली व्यक्ति था।
- वेबसाइट या पर्चे पर कोई बयान ऐसा नहीं था जिसे विशेष रूप से मानहानि कहा जा सकता था या धारा 66A के दायरे में आने के लिए किसी अन्य तत्व को पूरा कर रहा था।
- धारा 66A उन परिस्थितियों से संबंधित है जहां कोई भी बात या जानकारी प्रकाशित होने के साथ साथ भेजी भी गई हो। इसलिए प्रकाशन, सूचना या किसी वेबसाइट पर व्यक्त विचार, धारा 66A के तहत अपराध नहीं होगा।
- प्रतिवादी के वकील ने याचिकाकर्ता के उपर्युक्त कथनों का विरोध करते हुए प्रस्तुत किया कि प्राथमिकी में सभी विवरण सही ढंग से उल्लेखित है। अनुलग्नक संलग्न किए गए हैं। इसके अलावा समारोह में बिन बुलाए याचिकाकर्ता का आना, पर्चे का शीर्षक और दो वेबसाइटों के बारे में उनका उल्लेख करना जिसमें शिकायतकर्ता के खिलाफ मानहानि के बयान शामिल थे, उनके बुरे इरादों को दर्शाता है।
न्यायपीठ की राय
- अदालत ने “संचार सेवा”, “कंप्यूटर”, “कंप्यूटर नेटवर्क”, “कंप्यूटर संसाधन”, “कंप्यूटर प्रणाली”, “डेटा” और “सूचना” की परिभाषाओं पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि धारा 66A में भेजने और भेजने का तरीका दोनों शामिल हैं। इस मामले में, वेबसाइट एक कंप्यूटर संसाधन की राशि होगी और वेबसाइट पर जानकारी भी इस धारा के दायरे में आएगी। धारा 66A में दिया गया शब्द “भेजने” में सुचना को पाने, भेजने और किसी भी तरीके से प्रकाशित करने के लिए उसे संग्रहित करना भी शामिल है।
- अदालत ने यह भी कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की तुलना में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार अधिक महत्वपूर्ण है। इस तर्क के साथ, अदालत ने माना कि अनुच्छेद 19 का उल्लंघन नहीं हुआ है।
अन्तिम निर्णय
- न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
इस केस के सारांश को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें | | To read this case summary in English, click here.