एस करुणाकरण बनाम श्रीलेका
एस करुणाकरण बनाम श्रीलेका
मद्रास उच्च न्यायालय
CMP 10093/2019
न्यायाधीश टी.एस. शिवगनम और न्यायाधीश एन. सतीश कुमार के समक्ष
निर्णय दिनांक: 30 अप्रैल 2019
मामले की प्रासंगिकता: ईमेल भेजने वाले के बारे में अनुमान
सम्मिलित विधि और प्रावधान
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 88A)
मामले के प्रासंगिक तथ्य
- तथ्य यह है कि वादी और प्रतिवादी एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हैं। प्रतिवादी, वादी की इच्छा न होने के बावजूद भी उसे प्रेम का प्रस्ताव देता था। इंटरव्यू में हिस्सा लेने के बहाने मित्रों के आग्रह करने पर, वादी, प्रतिवादी और मित्रों के साथ 12 जून 2013 को पैरिस कॉर्नर में एक विशेष स्थान पर आवश्यक प्रमाण पत्र और फोटो के साथ शामिल हो गई, जिसका अनुरोध प्रतिवादी सहित उसके दोस्तों ने किया था। दूध की दुकान पर दूध पीते समय कुछ लोगों ने कार्यालय से आकर उसके प्रमाणपत्रों का सत्यापन किया और दो व्यक्तियों ने प्रिंट किये हुए फॉर्म पर उसके हस्ताक्षर भी प्राप्त किए।
- फिर फौरन उसे कार्यालय के अंदर ले जाकर रजिस्टर में साइन करने के लिए कहा गया। हालांकि उसे पता चला कि ऐसा रजिस्टर शादी का फॉर्म है, दोस्तों से घिरे रहने और उनके दबाव के कारण उसने फॉर्म पर साइन कर दिया और तुरंत वहां से चली गई और बस से अपने घर पहुंच गई।
- वादी ने प्रतिवादी से उन प्रमाणपत्रों को वापस पाने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश की और उससे फर्जी और अमान्य मैरिज सर्टिफिकेट को रद्द करने का अनुरोध किया। लेकिन प्रतिवादी ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और वादी को अपनी पत्नी के रूप में शामिल होने का आग्रह किया। हालांकि, 10.03.2014 को, प्रतिवादी और उसके लोगों का गिरोह तिरुनिंद्रवूर पुलिस स्टेशन आया और एक झूठी रिपोर्ट दी कि उसके माता-पिता ने वादी को कैद कर लिया है। अत: वादी ने दिनांक 13.03.2014 को थाने में शिकायत की। इसलिए यह मैरिज सर्टिफिकेट को रद्द करने का वाद है।
अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क
- अपीलकर्ता के वकील श्री एन. नागू शाह ने तर्क दिया कि वादी और प्रतिवादी के बीच ई-मेल उनके बीच संबंध को साबित करने के लिए दायर किया गया था। इस संबंध में, पार्टियों के बीच आदान-प्रदान किए गए ईमेल की एक कॉपी (Ex.B.2) दायर की गई है।
न्यायपीठ की राय
- यह ध्यान देनी वाली बात है कि तार सामग्री (telegraphic materials) को साक्ष्य के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इस तरह के ईमेल को दाखिल करने मात्र से यह नहीं कहा जा सकता है कि वे ईमेल कानून के अनुसार साबित हो गए हैं। न्यायालय यह मान सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक मैसेज उस व्यक्ति को भेजा गया है जिसे इस तरह के मैसेज को संबोधित किया जाना है लेकिन यह नहीं मान सकता है कि केवल वादी ने ही ऐसा ईमेल भेजा है।
- एविडेंस एक्ट की धारा 88(A) का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि न्यायालय उस व्यक्ति के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाएगा जिसके द्वारा ऐसा मैसेज भेजा गया था। इसलिए, केवल इस तरह के मैसेज को दाखिल करने से यह नहीं माना जा सकता है कि केवल वादी ने ही इस तरह के मैसेज को भेजा है। क्या वादी ने ईमेल भेजा है, जिस सिस्टम से ईमेल उत्पन्न हुआ है वह वादी के नियंत्रण में था या नहीं, इन बातों को साबित नहीं किया गया है।
अंतिम निर्णय
- तदनुसार, यह अपील खारिज की जाती है, और ट्रायल कोर्ट के हुक्मनामा (decree) और निर्णय की पुष्टि की जाती है। परिणामस्वरूप, बिना किसी लागत के संबंधित विविध याचिका को बंद किया जाता है।
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