के के वेलुसामी बनाम एन पलानीसामी

यश जैनCase Summary

के के वेलुसामी बनाम एन पलानीसामी

के के वेलुसामी बनाम एन पलानीसामी
(2011) 11 एस सी सी 275
उच्चतम न्यायालय
सिविल अपील 2795-2796/2011
न्यायाधीश आर वी रविंद्रन एवं न्यायाधीश ए के पाठक के समक्ष
निर्णय दिनांक: 30 मार्च 2011

मामले की प्रासंगिकता: एक प्रासंगिक तथ्य के रूप में कॉल रिकॉर्डिंग की मान्यता और सीपीसी की धारा 151 के तहत उन्हें सबूत के रूप में स्वीकार करना

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(1)(t))
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872  (धारा 3,8)
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (धारा 151, 35A, 35B, OXVIII R 17A)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • संविदा के विशिष्ट पालन के लिए प्रतिवादी द्वारा एक वाद दायर किया गया। ₹2,40,000 के प्रतिफल पर यह संविदा उसके और अपीलकर्ता के बीच में हुई थी। प्रतिवादी ने ₹1,60,000 का अग्रिम भुगतान पहले ही कर दिया था और तीन महीने के भीतर शेष राशि प्राप्त करने पर बिक्री नामा निष्पादित करने के लिए सहमत हो गया था।
  • तदनुसार, प्रतिवादी उप रजिस्ट्रार के कार्यालय में उक्त निष्पादन के लिए इंतजार कर रहा था और अपीलकर्ता वहां नहीं आया।
  • अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया कि चूंकि प्रतिवादी एक साहूकार है, इसलिए अपीलकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित खाली हस्ताक्षरित कागजात के बदले में उससे 1,50,000 का ऋण लिया गया था।
  • अपीलकर्ता ने एक कंपैक्ट डिस्क (CD) प्रस्तुत की जिसमें अपीलकर्ता, प्रतिवादी और मामले में शामिल तीन अन्य व्यक्तियों के बीच हुए इलेक्ट्रॉनिक रूप से रेकॉर्डेड कॉल्स के सबूत मौजूद थे।
  • प्रतिवादी ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि यह कॉल रिकॉर्डिंग मामले में शामिल तीन व्यक्तियों और मिमिक्री करने वाले कलाकारों द्वारा बनाई गई है।
  • निचली अदालत ने इस आधार पर सबूत को अस्वीकार कर दिया कि सबूत पहले ही दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किये जा चुका थे और चूंकि तर्कों के निष्कर्ष भी निकल गए थे, नए सबूत की स्वीकृति का आवेदन सिर्फ मामले को विलंब करेगा।

न्याय पीठ की राय

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 की साक्ष्य की परिभाषा को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2(1)(t) में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की परिभाषा के साथ पढ़ा जाए तो ये साफ़ है की सीडी (CD) इन दोनों परिभाषाओं के अंतर्गत आती है |
  • जैसा कि आर एम मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (एआईआर 1973 एससी 157), के मामले में उच्चतम न्यायलय ने कहा है की इलेक्ट्रॉनिक रूप से दर्ज की गई बातचीत अदालत में स्वीकार है, यदि – बातचीत की समकालीन इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग एक प्रासंगिक तथ्य है जो कि एक प्रासंगिक घटना के फोटोग्राफ से तुलनीय है और धारा 8  के तहत सबूत के तौर पर स्वीकार्य है।

अंतिम निर्णय

  • निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने इस बात को मान्यता नहीं दी है कि दाखिल किया जाने वाला साक्ष्य अदालत के समक्ष इस मुद्दे को स्पष्ट करने में सहायक होंगे या नहीं।
  • उन्होंने बुद्धि रहित रूप से आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मामला अपने अंतिम चरण पर है और तर्कों का निष्कर्ष भी निकल गया है।
  • सी पी सी की धारा 151 के तहत विवेकाधीन शक्तियों के प्रयोग हेतु निचली अदालत के लिए यह मामला उपयुक्त था कि वो अपीलकर्ता से CD देरी से पेश करने का कारण पूछे |
  • स्वीकृति के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने से पहले अदालत रिकॉर्डिंग को भी सुन सकती है |
  • निचली अदालत को इस मामले के निर्णय के आधार पर सुनवाई करने का आदेश दिया गया था।

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