लड्डी बनाम हरियाणा राज्य

यश जैनCase Summary

लड्डी बनाम हरियाणा राज्य

लड्डी बनाम हरियाणा राज्य
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय
CRR 398/2013
न्यायाधीश परमजीत सिंह के समक्ष
निर्णय दिनांक: 2 मई 2013

मामले की प्रासंगिकता: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के द्वितीयक साक्ष्य की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 376, 506)
  • साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 2, 3, 8, 146 (1), 153,  155 (3), 165A)
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2, 4, 7, 92)
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 311)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • अभियोक्त्री पर बलात्कार करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कैथल जिले के पुलिस थाने में 17 अगस्त 2012 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता ने इसे नकार दिया।
  • यह आरोप लगाया गया है कि 11 अगस्त 2012 को याचिकाकर्ता के भाई के सेल फोन से अभियोक्त्री और आरोपी के बीच बातचीत हुई थी। इस सेल फोन में बातचीत को रिकॉर्ड करने की सुविधा भी थी। यह तथ्य आरोपी के भाई द्वारा उनके संज्ञान में लाया गया था।
  • उक्त बातचीत से, याचिकाकर्ता यह साबित करना चाहता था कि अभियोक्त्री और उसके बीच प्रेम के संबंध थे।
  • उक्त बातचीत की रिकॉर्डिंग को सीडी में बदला गया था जिससे अदालत उसे सबूत के तौर पर स्वीकार करें और अनुमति दे कर अभियोक्त्रि की आवाज़ का सैंपल ले कर फॉरेंसिक लैब में तुलना और विश्लेषण के लिए भेजें।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • राज्य के वकील ने उक्त आवेदनों का विरोध इस आधार पर किया था कि वे योग्यता से रहित और अस्पष्ट हैं। विद्वान वकील के अनुसार, भले ही उनके बीच कोई बातचीत हुई हो, लेकिन यह अभियोक्त्री पर बलात्कार करने का लाइसेंस नहीं देता है।
  • राज्य के वकील ने हालांकि, आरोपी और अभियोक्त्री के बीच बातचीत से इनकार कर दिया।
  • अगला विवाद यह था कि क्या ऐसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को वास्तव में साक्ष्य माना जा सकता है और अदालत के समक्ष स्वीकार्य होने योग्य किया जा सकता है या नहीं।
  • याचिकाकर्ता के वकील चाहते थे कि अदालत आवेदन को स्वीकार करें क्योंकि हर व्यक्ति के साथ-साथ एक आरोपी को भी समान अवसर और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार होना चाहिए।

न्यायपीठ की राय

  • अदालत ने कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि प्रतिरक्षा के साक्ष्य को जोड़ने के लिए आरोपी का अधिकार केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि आपराधिक सुनवाई का एक अनिवार्य हिस्सा है जहां आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए। इस मामले में, याचिकाकर्ता ने तीन आवेदन दायर किए थे, एक अभियोक्त्री की पुन: जांच के लिए, दूसरा अभियोक्त्री के वॉयस सैंपल लेने के लिए, और अंतिम इस मामले में अपनी निर्दोषता और गलत निहितार्थ साबित करने एवं वॉयस सैंपल की सत्यता के लिए फॉरेंसिक लैब में भेजना । यह अवसर मिलने पर, याचिकाकर्ता वार्तालाप और वार्तालाप के प्रतिलेख  को साबित कर सकता है जिसे कानून के अनुसार प्रासंगिक और स्वीकार्य सबूत माना जाता था, जो कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न पूर्व फैसलों में आयोजित शर्तों की संतुष्टि के अधीन था। इसलिए, अदालत ने विचार किया कि वह याचिकाकर्ता को अपनी बेगुनाही साबित करने का अवसर देगी।

अन्तिम निर्णय

  • नतीजतन, न्यायालय द्वारा सभी तीन आपराधिक संशोधनों को अनुमति दी गई।

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