रमेश राजगोपाल बनाम देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड

यश जैनCase Summary

रमेश राजगोपाल बनाम देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड

रमेश राजगोपाल बनाम देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड
(2016) 6 एससीसी 310
उच्चतम न्यायालय
आपराधिक अपील  133/2016
न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायाधीश अमिताभ रॉय के समक्ष
निर्णय दिनांक: 19 अप्रैल 2016

मामले की प्रासंगिकता: कंपनी की वेबसाइट में प्रवेश करना और उसे संपादित करने के लिए कंपनी के निदेशक का अधिकार

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 43, 65, 66)
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 409, 468, 471, 120B)
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 482)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • अपीलकर्ता देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई में एक निदेशक है। कंपनी की 3 इकाइयां है: A, B और C। अपीलकर्ता इकाई C का प्रमुख है जो परामर्श सेवाओं (कंसल्टेंसी सर्विसेज) का प्रतिपादन करती है।
  • परामर्श सेवाओं में सुधार के लिए अपीलकर्ता ने कंपनी के कुछ परामर्शदाताओं के साथ सलाहकार माइकल टी. जैक्सन से संपर्क किया। सभी सलाहकारों से प्राप्त हुए सुझावों के अनुसार Devi Consultancy Services नामक वेबसाइट बनाई गई थी।
  • प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के खिलाफ तत्काल आपराधिक शिकायत शुरू की। इस शिकायत का मुख्य आधार यह था कि देवी कंसलटेंसी सर्विसेज नामक वेबसाइट को एक अलग विभाग के रूप में दर्शाया गया था, जो देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड से स्वतंत्र है। शिकायत के अनुसार, इससे कूट रचना हुई है क्योंकि देवी कंसलटेंसी सर्विसेज जैसी कोई चीज नहीं है, हालांकि देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड C इकाई का अस्तित्व है, जो कंसल्टेंसी से संबंधित है।
  • उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि किसी भी निष्कर्ष पर आने के लिए परीक्षण (ट्रायल) में साक्ष्य की आवश्यकता होती है।

न्याय पीठ की राय

  • तथ्यों में से कोई भी तथ्य आईपीसी के तहत अपराध के घटित होने के अनुमान का कारण नहीं बनता है। जहां तक वेबसाइट का सवाल है देवी कंसलटेंसी सर्विसेज निसंदेह उल्लेखित है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह देवी पॉलीमर्स प्राइवेट लिमिटेड की ही एक संपत्ति है। इसलिए इस कृत्य को कूट रचना के रूप में देखना संभव नहीं है।
  • अपीलकर्ता देवी पॉलीमर्स का एक निदेशक था और इसलिए उसे कंपनी के कंप्यूटर नेटवर्क को एक्सेस करने का अधिकार है और इसलिए आईटी एक्ट की धारा 66 r/w 43 के तहत कोई भी अपराध घटित नहीं हुआ है। आरोप यह नहीं है कि किसी भी कंप्यूटर के साधन कोड(source code) को छुपाया, नष्ट या बदल दिया गया हो, इसलिए धारा 65 लागू नहीं होती है। इन परिस्थितियों में, आईटी एक्ट की धारा 65 और 66 के तहत कोई मामला नहीं बनता है।

अंतिम निर्णय

अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ है और न्याय के सिरों को पूरा करना आवश्यक है। अपील सफल हो जाती है और अभियोजन को खारिज कर दिया जाता है।


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