तमिलनाडु ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारतीय स्टेट बैंक तनावग्रस्त आस्ति प्रबंधन शाखा

यश जैनCase Summary

तमिलनाडु ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारतीय स्टेट बैंक तनावग्रस्त आस्ति प्रबंधन शाखा

तमिलनाडु ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारतीय स्टेट बैंक तनावग्रस्त आस्ति प्रबंधन शाखा
मद्रास उच्च न्यायालय
रिट याचिका 34376/2013
न्यायाधीश एम जयचन्द्रेण एवं न्यायाधीश के कल्याणसुंदरम के समक्ष
निर्णय दिनांक: 20 फरवरी 2014

मामले की प्रासंगिकता: ई-नीलामी की वैधता

सम्मिलित कानून और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 1(4), 2(w), 10A)
  • भाारतीय संविधान, 1950 (अनुच्छेद 14)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • ई-नीलामी बिक्री के संबंध में प्रतिवादी के रिकॉर्ड की मांग के लिए उत्प्रेषण रिट जारी करने के लिए रिट याचिका दायर की गई है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं ने यह प्रस्तुत किया कि:
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 1(4) के साथ, इसी अधिनियम की पहली अनुसूची का मद 5, यह स्पष्ट करता है कि प्रतिवादी बैंकों द्वारा अपनाई जाने वाली ई-नीलामी प्रक्रिया अनधिकृत होगी और इसलिए, यह कानून की नजर में अमान्य हैं ।
    • संबंधित बैंकों द्वारा ई-नीलामी बिक्री की प्रक्रियाएं स्वाभाव से मनमाने तरीके की हैं, क्योंकि यह बिक्री के लिए लाए गए सुरक्षित संपत्तियों के इच्छुक खरीदारों के लिए नुकसान पैदा करती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास ई-नीलामी बिक्री में भाग लेने के लिए आवश्यक सुविधाएं और कौशल नहीं होगा।
    • जो ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं और जो निरक्षर हैं, ऐसे इच्छुक खरीदारों का नुकसान करवाना, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
    • कुछ सेवा प्रदाताओं का उपयोग करके, ई-नीलामी के माध्यम से सुरक्षित संपत्तियों की बिक्री, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में धारा 2(w) में किए गए संशोधन के माध्यम से विचार किया गया है।
  • प्रतिवादी बैंकों की ओर से अधिवक्ताओं ने प्रस्तुत किया कि:
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 10A इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से गठित संविदाओं की वैधता से संबंधित है। इस प्रकार, यह देखा जा सकता है कि संविदात्मक देनदारियां इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से उत्पन्न हो सकती हैं और कानून द्वारा इस तरह की संविदाओं को लागू किया जा सकता है।
    • प्रतिवादी बैंक सुरक्षित संपत्ति की ई-नीलामी की बिक्री के संचालन हेतु आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए, सरकारी अधिकृत सेवा प्रदाताओं की सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।
    • इसके अलावा, व्यक्तिगत जानकारी और बोलीदाताओं के बारे में कुछ अन्य जानकारी, जो ई-नीलामी बिक्री प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, को आवश्यक सीमा तक गोपनीय रखा जाता है।
    • अनैतिक प्रथाओं को खत्म करने की दृष्टि से सुरक्षित संपत्तियों की बिक्री की सुविधा के लिए प्रतिवादी बैंकों द्वारा ई-नीलामी की नई पद्धति को अपनाया गया है।
    • ई-नीलामी द्वारा प्रतिवादी बैंकों को सुरक्षित संपत्ति की बिक्री से रोकने के लिए कानून का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। ई-नीलामी कुछ तकनीकी प्रक्रियाओं की सहायता से आयोजित सार्वजनिक नीलामी है|

खंडपीठ की राय

  • याचिकाकर्ताओं ने अदालत द्वारा ई-नीलामी की बिक्री, जो प्रतिवादी बैंकों द्वारा संचालित है, में हस्तक्षेप करने के लिए पर्याप्त कारण या वजह नहीं बताई है। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि ई-नीलामी की बिक्री की प्रक्रियाएं, उत्तरदाता बैंकों द्वारा, कानून की नजर में मनमानी और अमान्य हैं।
  • उन्नत देशों ने अपने विभिन्न प्रयासों में दक्षता बढ़ाने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग किया है। समय की जरूरत है कि इस देश में विभिन्न प्राधिकरणों और संस्थाओं के कामकाज में इस तरह के तरीकों को अपनाया जाए, जिसमें राज्य के उपकरण भी शामिल हैं।
  • कहा जाता है कि भारत में, खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में शौचालयों की तुलना में अधिक सेल फोन हैं। एक स्पष्ट संकेत है कि हम डिजिटल युग की ओर बढ़ रहे हैं। भले ही भारत डिजिटल तकनीक के उपयोग में उन्नत देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए बराबरी पर नहीं है, लेकिन हम बहुत पीछे भी नहीं हैं।

अंतिम निर्णय

  • रिट याचिका खारिज हो गई। यथाक्रम रूप से जुड़ी सभी विविध याचिकाओं को बंद कर दिया जाता है।

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