के. रामजायम बनाम पुलिस निरीक्षक

यश जैनCase Summary

के. रामजायम बनाम पुलिस निरीक्षक

के. रामजायम बनाम पुलिस निरीक्षक
Referred Trial 1/2015, Cr A 110/2015
मद्रास उच्च न्यायालय
न्यायाधीश आर. सुधाकर और न्यायाधीश पी.एन. प्रकाश के समक्ष
निर्णय दिनांक: 27 जनवरी 2016

मामले की प्रासंगिकता: धारा 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिए प्रमाणपत्र की आवश्यकताएं

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 2(t))
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 302, 380, 404, 449)
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 65A, 65B)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • धनाराम और गुनाराम भाई थे। वे दोनों साहूकारिता का काम करते थे और “बालाजी पॉन ब्रोकर्स” नाम की ज्वेलरी दुकान चलाते थे।
  • मृतक गुनाराम ने सुबह करीब आठ बजे दुकान खोली। सुबह के करीब 9 बजे उसका भाई धनाराम वहां आया और कुछ देर वहां रहने के बाद किसी दूसरे काम के लिए निकल गया।
  • दोपहर करीब 12 बजे जब वह दुकान पर लौटा तो अपने भाई को खून से लथपथ देख वह चौंक गया। उसने शोर मचाया और बगल के दुकान मालिक मौके पर आ गए।
  • हत्या के अलावा, 935 ग्राम सोना भी चोरी हो गया था।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • याचिकाकर्ताओं के वकील ने PV Anvar v. PK Basheer में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया जिसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65A और 65B की व्याख्या की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा 65B के तहत प्रमाण पत्र के बिना सीडी में रिकॉर्ड किया गया इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कोर्ट में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  • सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता द्वारा बताये गए जजमेंट में ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि धारा 62 के तहत प्राथमिक साक्ष्य के रूप में एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश किया जाता है, तो वह धारा 65B में दी गई शर्तों का पालन किये बिना स्वीकार्य किया जा सकता है।

न्यायपीठ की राय

  • पीठ की राय थी कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को आईटी एक्ट, 2000 की धारा 2(t) में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता है, लेकिन कुछ मामलों में, पूरे सर्वर को कोर्ट रूम में लाना असंभव हो जाता है। वर्तमान मामले में, आरोपी अपराध करते वक्त कैमरे में स्पष्ट रूप से कैद हुआ था और इसलिए, सीसीटीवी फुटेज को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के रूप में माना जाना चाहिए।

अंतिम निर्णय

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 404 के तहत अपीलकर्ता/अभियुक्त की दोषसिद्धि और उस पर लगाई गई सजा को निरस्त किया जाता है।
  • अपीलकर्ता/अभियुक्त को आईपीसी की धारा 449, 392 एवं 302 के अधीन दोषसिद्धि की  पुष्टि की जाती है।
  • धारा 449 और 392 के तहत सुनाई गई सजा को बरकार रखा जाता है।
  • धारा 302 के तहत अपराध के लिए लगाई गई मौत की सजा रद्द की जाती है। इसकी जगह आरोपी को आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। यह निर्देश दिया जाता है कि आरोपी को कम से कम 25 साल की जेल की सजा काटनी है, जिसके दौरान वह किसी भी वैधानिक छूट या सजा को कम कराने का हकदार नहीं होगा।

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