उड़ीसा राज्य बनाम नारायण चंद्र नायक

यश जैनCase Summary

जिरह के लिए ऑडियो-वीडियो कैसेट का इस्तेमाल करना जिसमें गवाह के बयान दर्ज किये गए है

उड़ीसा राज्य बनाम नारायण चंद्र नायक
(2013) 121 AIC 431
उड़ीसा उच्च न्यायालय
आपराधिक विविध प्रकरण 3812/2011
न्यायाधीश बी.के. नायक के समक्ष
निर्णय दिनांक: 01 अगस्त 2012

मामले की प्रासंगिकता: जिरह के लिए ऑडियो-वीडियो कैसेट का इस्तेमाल करना जिसमें गवाह के बयान दर्ज किये गए है

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 4, 79A)
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 376)
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 161, 162, 482)
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (धारा 45A, 145)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • वर्तमान मामला एक विवाहित महिला के साथ कथित रूप से बलात्कार के लिए आईपीसी की धारा 376(2)(a) और कुछ अन्य धाराओं के तहत अपराध करने से संबंधित है।
  • पीड़ित सहित अभियोजन पक्ष के गवाह उनके मामले का समर्थन नहीं कर पाए है।
  • अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी। उनकी यह प्रार्थना थी कि अदालत में पेश किए गए गवाहों के बयान वाली ऑडियो-वीडियो कैसेट को सीआरपीसी की धारा 162(1) के प्रावधान के अनुसार गवाहों का विरोध करने के उद्देश्य से प्रदर्शित किया जा सकता है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

अभियोजन पक्ष की ओर से अधिवक्ता:

  • जांच के दौरान गवाह द्वारा दिए गए बयान को, जांच अधिकारी ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड किया जा सकता है और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 162 की उप-धारा (1) के प्रावधान के तहत कोई प्रतिबंध नहीं होने के कारण, अभियोजन पक्ष ऐसी ऑडियो-वीडियो सीडी/कैसेट प्रदर्शित करके उपयोग कर सकता है एक पक्षद्रोही गवाह का खंडन करने के लिए जिसका बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड किया गया है।

आरोपी की ओर से अधिवक्ता:

  • अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान जांच अधिकारी द्वारा लिखित में दर्ज किए गए। अभियोजन पक्ष द्वारा उक्त गवाहों से पहले ही पूछताछ की जा चुकी है, क्योंकि वे अभियोजन पक्ष से मुकर गए थे और इसलिए, इस उद्देश्य के लिए तथाकथित ऑडियो-वीडियो/सीडी और कैसेट को क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए फिर से पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही जब्त ऑडियो-वीडियो सीडी और कैसेट की प्रमाणिकता साबित नहीं हुई हैं।

न्यायपीठ की राय

  • आईटी एक्ट की धारा 4 के अनुसार, आईओ द्वारा ऑडियो-वीडियो के माध्यम से दर्ज गवाहों के बयान को लिखित बयान के रूप में माना जा सकता है और यह बात दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 162(1) के प्रावधान की आवश्यकता को पूरी करता है।
  • इससे पहले कि किसी गवाह का जांच अधिकारी के समक्ष दिए गए उसके पिछले बयान के संदर्भ में खंडन किया जा सके, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 145 द्वारा प्रदान किए गए तरीके से बयान को विधिवत साबित किया जाना चाहिए। शब्द ‘यदि विधिवत साबित’ स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बयान के रिकॉर्ड को सीधे साक्ष्य में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  • जिन लोगों ने जांच अधिकारी द्वारा गवाहों की परीक्षा का वीडियो बनाया था, उन्होंने इस तरह की वीडियो ग्राफिंग करने से इनकार किया है। इसलिए, सी.डी. की वास्तविकता और प्रामाणिकता संदेह के घेरे में है।
  • जांच एजेंसी ने सी.डी. के परिक्षण के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45A के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के परीक्षक का सहारा नहीं लिया है, जिनके बारे में सूचना प्रौद्योिगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79A में बात की गई है।

अन्तिम निर्णय

  • सीडी और कैसेट का मात्र प्रदर्शन ‘विधिवत सिद्ध’ की आवश्यकता को पूरा नहीं करेंगे।
  • जांच अधिकारी ने अपनी जांच के दौरान गवाहों के बयान को लिखित रूप में दर्ज किया और अभियोजन पक्ष द्वारा गवाहों की जिरह भी हो चुकी है।
  • इसलिए, सीडी और कैसेट को पेश करने में कोई और उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
  • आपराधिक मामले को खारिज कर दिया गया।

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