अभिनव गुप्ता बनाम जेसीबी इंडिया लिमिटेड और अन्य

यश जैनCase Summary

अभिनव गुप्ता बनाम जेसीबी इंडिया लिमिटेड और अन्य

अभिनव गुप्ता बनाम जेसीबी इंडिया लिमिटेड और अन्य
दिल्ली उच्च न्यायालय
FAO (OS) 488-489/2008
न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश वाल्मीकि जे. मेहता के समक्ष
निर्णय दिनांक: 1 सितंबर 2010

मामले की प्रासंगिकता: सी.पी.सी के आदेश 7 नियम 11 और आईटी एक्ट की धारा 43 के बीच टकराव

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 43, 46, 61, 66)
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (आदेश 7 नियम 11)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • वर्तमान प्रकरण में प्रतिवादी निर्माण और मशीनरी की सबसे बड़ी उपकरण निर्माता कंपनी है, जो जेसीबी और उसके प्रतीक चिन्ह (logo) के नाम से उत्पादों को बेचते थे। मौजूदा मामले में अपीलकर्ता ने प्रतिवादी की कंपनी में एक डिजाइन प्रबंधक के रूप में काम किया। नियम और शर्तों के अनुसार, वह प्रतिवादी की कंपनी से संबंधित गोपनीय जानकारी, चित्र, डिजाइन योजनाओं को संलग्न करने के लिए अधिकृत नहीं था।
  • कुछ वक्त बाद उन्होंने इस कंपनी को छोड़ दिया और एस्कॉर्ट्स कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट लिमिटेड नाम की एक प्रतियोगी कंपनी से जुड़ गए।
  • अपीलकर्ता ने कथित तौर पर वादी की कंपनी से गोपनीय डेटा, डिजाइन, गुप्त और संबंधित जानकारी का गलत इस्तमाल करते हुए उनकी आधिकारिक मेल आईडी से व्यक्तिगत मेल आईडी पर भेजा था | यह अनधिकृत अभिगम (unauthorised access) धारा 43 का उल्लंघन करता है और कॉपीराइट और गोपनीयता को भी भंग करता है। अपीलकर्ता ने आदेश VII के नियम 11 के तहत इस आधार पर एक आवेदन दायर किया है कि यह आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत वर्जित है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया की अगर आईटी एक्ट द्वारा कोई कार्यवाही का कारण वर्जित है तो इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए इस अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया जाए क्यूँकि कॉपीराइट और गोपनीयता के उल्लंघन के लिए भी कानूनी राहत मिल सकती है।

न्यायपीठ की राय

  • न्यायाधीश ने माना की इस प्रकरण में माँगी गयी राहत आईटी एक्ट में प्रधान रूप से दी गयी है और एक सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। अगर सीपीसी की उपयोग को वर्जित नहीं किया जाता तो यह एक विशेष अधिनियम अवहेलना और उल्लंघन होता। सीपीसी के तहत माँगी गयी राहत आईटी एक्ट के अंतर्गत माँगी गयी प्रमुख राहत पर निर्भर थी। ऐसी परिस्थति में इस मुक़दमे को आगे बढ़ाने का कोई कारण नहीं दिखता है।

अंतिम निर्णय

  • अपील में कोई योग्यता नहीं मिलने पर उसे खारिज कर दिया गया।

निजी राय

  • कॉपीराइट अहिनियम के तहत कोर्ट को निषेधाज्ञा देना चाहिए था।

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