प्रेमचंद्रन बनाम रविंधर

यश जैनCase Summary

प्रेमचंद्रन बनाम रविंधर

प्रेमचंद्रन बनाम रविंधर
केरल उच्च न्यायालय
Crl. M.C. 89/2013
न्यायधीश टी आर रामचंद्रन नायर के समक्ष
निर्णय दिनांक: 17 जनवरी 2013

मामले की प्रासंगिकताआईटी एक्ट की धारा 77A के तहत अपराधों का शमन

सम्मिलित विधि और प्रावधान

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 43, 66, 77A)
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (धारा 320)

मामले के प्रासंगिक तथ्य

  • याचिकाकर्ताओं पर आईटी एक्ट की धारा 43 सहपठित 66 का आरोप है।
  • यह अपील धारा 77A के तहत अपराधों के शमन करने की अनुमति देने के संबंध में है।
  • उन्होंने न्यायालय का दरवाज़ा इसलिए खटखटाया है क्योंकि जांच अधिकारी अपराधों को शमन करने की दलील का जवाब नहीं दे रहा है।

अधिवक्ताओं द्वारा प्रमुख तर्क

  • याचिकाकर्ता के वकील ने येसुदास बनाम सब इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस (2008(1) KLT 245) के मामले का ज़िक्र किया।
  • उपरोक्त मामले के परिच्छेद 17 में कहा गया है कि “मात्र यह तथ्य की पीड़ित और/या आरोपी के पास शमन की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस के पास जाने का विकल्प है, यह बात सीआरपीसी की धारा 320(1) और 320(2) के तहत अपराधों के शमन के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने के अधिकार को नहीं छीन सकती। ऐसी स्थिति में, मजिस्ट्रेट को निश्चित रूप से जांच अधिकारी को सूचना देनी होगी और दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्णय देना होगा।”

अंतिम निर्णय

  • न्यायालय ने यह कहा कि अपराधों के शमन की अनुमति है। उसी के लिए एक नई याचिका दायर करना आवश्यक है। 2 महीने के भीतर उचित कार्रवाई की जाएगी।

निजी राय

यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जब आईटी एक्ट के प्रावधानों की बात आती है तो कानून प्रवर्तन एजेंसियों में तत्परता नहीं दिखती है। धारा 77A में स्पष्ट रूप से अपराधों का शमन निर्धारित है, लेकिन यहां जांच अधिकारी ने मामले का शमन नहीं किया और इसलिए आरोपी को अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।


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